दिव्यध्वनि स्तुति
दिव्यध्वनि स्तुति शम्भु छंद जय जय तीर्थंकर धर्म चक्रधर, जय प्रभु समवसरण स्वामी।जय जय त्रिभुवन त्रयकाल एक, क्षण में जानो अंतर्यामी।। जय सब विद्या के ईश आप की, दिव्यध्वनी जो खिरती है।वह तालु ओष्ठ कंठादिक के, व्यापार रहित ही दिखती है।।१।। अठरह महाभाषा सातशतक, क्षुद्रक भाषामय दिव्य धुनी।उस अक्षर अनक्षरात्मक को, संज्ञी जीवों ने आन...