05. जिनसहस्रनाम स्तोत्र (पंचम अध्याय)
1 2 3 4 अध्याय -५ विष्णुपद छंद आप नाम ‘श्री वृक्षलक्षणा’, इंद्र सदा गावें। दिव्य अशोक वृक्ष इक योजन, मणिमय दर्शावें।। नाममंत्र को मैं नित वंदूं, भक्ती मन धरके। पाऊँ निज गुण संपत्ती मैं, स्वपर भेद करके।।४०१।। अनंतलक्ष्मी प्रिया साथ में, आलिंगन करते। सूक्ष्मरूप होने से भगवन् ,‘श्लक्ष्ण’ नाम धरते।।नाम.।।४०२।। अष्ट महाव्याकरण कुशल हो,...