पात्रकेसरी स्तोत्र
पात्रकेसरी स्तोत्र (श्री विद्यानंदि स्वामि-विरचित) (पृथ्वी छंद) जिनेन्द्र! गुण संस्तुतिस्तव मनागपि प्रस्तुता। भवत्यखिलकर्मणां प्रहतये परं कारणं।। इति व्यवसिता मतिर्मम ततोऽह-मत्यादरात्। स्फुटार्थ-नयपेशलां सुगत! संविधास्ये स्तुतिम् ।।१।। पद्यानुवाद (चौबोल छंद) हे जिनवर! गुण संस्तव तेरा, किंचित भी गाया जाता। अखिल कर्म के नाश हेतु है, कारण मुख्य ये विख्याता।। इति निश्चित बुद्धी से मैं अति, आदरपूर्वक सुगत...