रोगराहित्य!
[[श्रेणी:शब्दकोष]] रोगराहित्य – रोगरूपी बाधा का अभाव होना। अर्हत भगवान के देवकृत अतिषयों में एक अतिषय। समवषरण में सम्पूर्ण जीवों को रोग आदि की बाधाए नही होना। Rogarahitya-Devoid of disease, an excellence of lord Arihant
[[श्रेणी:शब्दकोष]] रोगराहित्य – रोगरूपी बाधा का अभाव होना। अर्हत भगवान के देवकृत अतिषयों में एक अतिषय। समवषरण में सम्पूर्ण जीवों को रोग आदि की बाधाए नही होना। Rogarahitya-Devoid of disease, an excellence of lord Arihant
छल Deception, lllusion, Fraud. वादी के वचन से दूसरा अर्थ कल्पनाकार उसके वचन में दोष देना, मायाचारी , धोखा करना ।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
[[श्रेणी:शब्दकोष]] सर्वातिचार प्रतिक्रमण – Sarvaatichaara Pratikramamna. Purification or repentance of all faults commited in ascetic life. दीक्षा ग्रहण से लेकर समस्त तपष्चरण के काल तक जो दोष लगे हो उनकी शुद्धि करना।
[[श्रेणी:शब्दकोष]] राजवृत्ति – राजा का कार्य, पक्षपात हो कुल की मर्यादा, बुद्धि और अपनी रक्षा करते हुए न्याय पूर्वक प्रजा का पालन करना राजाओं की राजवृत्ति कहलाती है। Rajavrtti-Ruling duties of a king
छेदोपस्थापक Jain saints observing 28 Moolguns (basic virtues). छेदोपस्थापना अर्थात् २८ भेदरूप मूलगुण उन भेदरूप मूलगुणों का पालन करने वाले मुनि छेदोपस्थापक कहे जाते हैं ।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
[[श्रेणी:शब्दकोष]] सर्वश्री – Sarvashree. Name of an Aryika who would get birth in heaven in the last period of Panchamkal (the 5th long period of time) पंचमकाल की अंतिम आर्यिका जो पंचम काल के साढे़ आठ माह शेष रहने पर कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष के अंतिम दिन स्वाति नक्षत्र में देह त्यागकर स्वर्ग में…
[[श्रेणी : शब्दकोष]] ममकार – Mamakara. My-ness , A feeling of mine with worldly objects. आत्मा से भिन्न पर पदार्थों में मेरेपन का भाव ममकार हैं “
छाया Shadow, Image. प्रकाश के आवरणभूत शरीर आदि का प्रतिबिम्ब।[[श्रेणी:शब्दकोष]] [[श्रेणी:पुत्री]]
[[श्रेणी:शब्दकोष]] सर्वप्रिय – Sarvapriya. Dear to all, universally popular, Name of the 27th chief disciple of Lord Rishabhdev. ’सबको अच्छा लगने वाला , भगवान वृषभदेव के 27 वें गणधर ।
[[ श्रेणी:जैन_सूक्ति_भण्डार ]] [[ श्रेणी:शब्दकोष ]] == सम्यक् दर्शन : == सम्मद्दंसणलंभो वरं खु तेलोक्कलंभादो। —भगवती आराधना : ७४२ सम्यक् दर्शन की प्राप्ति तीन लोक के ऐश्वर्य से भी श्रेष्ठ है। यथार्थतत्त्व श्रद्धा सम्यक्त्वम्। —जैन सिद्धान्त दीपिका : ५-३ जीवादि तत्त्वों की यथार्थश्रद्धा (सम्यक्—विचार) करना सम्यक् दर्शन है। दर्शनभ्रष्टा: भ्रष्टा:, दर्शनभ्रष्टस्य नास्ति निर्वाणम्। सिध्यन्ति चरितभ्रष्टा:,…