पुण्य आस्त्रव!
[[श्रेणी:शब्दकोष]] पुण्य आस्त्रव – Punya Asrava. Influx of meritorious & auspicious Karmic results. पुण्यकर्म आने योग्य भाव; मन वचन काय की शुभ क्रिया “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] पुण्य आस्त्रव – Punya Asrava. Influx of meritorious & auspicious Karmic results. पुण्यकर्म आने योग्य भाव; मन वचन काय की शुभ क्रिया “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] वादिराज – Vaadiraaj.: Name of a great Acharya, the writer of ‘Ekibhava Stotra’. एक आचार्य जिन्होंने एकीभाव स्तोत्र की रचना कर अपने कुष्ठ रोग को दूर किया “इनकी अन्य रचनाएं पार्श्वनाथ चरित्र ,यशोधर चरित्र ,न्याय विनिश्चय विवरण आदि हैं (समय –ई.स. 1010 – 1065) “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] पंचेन्द्रिय जीव – Panchendriya Jeeva. Five sensed Tiryanch beings (animals etc.). मनुष्यादि जीव जिनके स्पर्शन रसना, घ्राण, चक्षु और श्रोत्र इन्द्रियां पाई जाती है” इनके दो भेद है- मनसहित-संज्ञी, मनरहित- असंज्ञी “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] शुक्लपक्ष – Shuklapaksha. The bright half of a lunar month (from new to full moon day). चंद्रमास का उज्जवल या सुदी पक्ष ” अथवा प्रतिप्रदा से राहू के गमन विशेष से चंद्रमंडल या चन्द्रमा की एक-एक कला खुलती चली जाती है, 16 कला पूर्ण होने पर पूर्णिमा होती है ऐसे कलावृद्धि पक्ष को शुक्लपक्ष…
एकत्वसप्ततिका Name of a book on soul theory. शुद्धात्म स्वरूप पर संस्कृत भाषा में रचित ग्रन्थ (ई.श्. 11 का उत्तारार्ध)।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
देशात्मवाद Doctrine of believing extrinsic pleasures. बहिरात्मपना जो शुद्धदात्मा अनुभूति से विमुख इन्द्रिय सुख में आसक्ति एवं देह को आत्मा मानता है।।[[श्रेणी: शब्दकोष ]]
वाणिज्य – Vaanijya.: Trade, Commerce, Business, an important activity of livelihood. भगवान आदिनाथ द्वारा उपदेशित ष्टकर्मों में एक कर्म; व्यापार द्वारा आजीविका करना “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] पंचाश्चर्य – Panchashchry Five spiritual & super wonder. देवकृत रत्नवर्षा, पुष्पवर्षा, गंधोदकवृष्टि, शीतल मंद सुगंधित वायु प्रवाह, दुंदुभि बाजे और अहोदनं अहोदनं की ध्वनी ” यह पंचाश्चर्य वृष्टि तीर्थकर भगवंत एवं विशेष महामुनियों के आहार में देवों द्वारा की जाती है “
[[श्रेणी : शब्दकोष]] भविष्यकाल – Bhavisyakala. Future time. काल का एक भेद; अनागत काल , यह सर्व जीव राशि व सर्व पुददगलराशि से अनंतगुणा है “
[[श्रेणी : शब्दकोष]] व्यंतर लोक –Vyaintara Loka. The world of peripatetic deities. चित्रा और व्रजा पृथिवी की मध्यसंधि से लगाकर मेरु पर्वत की ऊंचाई तक तथा तिर्यकृ लोक के विस्तार प्रभाव लम्बे – चौड़े क्षेत्र को व्यंतर लोक कहते है जहाँ व्यंतरदेवो के भवन, भवनपुर और आवास होते हैं “