समर्थ :!
[[ श्रेणी:जैन_सूक्ति_भण्डार ]] [[ श्रेणी:शब्दकोष ]] == समर्थ : == महिऊण महाजलिंह महुमहणो तत्थ सुयइ वीसत्थो। एयं नीइविरुद्धं छज्जइ सव्वं समत्थाणं।। —गाहारयणकोष : १८२ महासमुद्र का मंथन करके विष्णु वहीं सुखपूर्वक सोते हैं। ऐसे नीतिविरुद्ध कार्य (किसी का घर उजाड़कर वहीं शरण लेना) तो समर्थ को ही शोभा देते हैं।