पंचरत्नवृष्टि!
[[श्रेणी:शब्दकोष]] पंचरत्नवृष्टि – Pancharatnavrishti. Showering of jewels by details where thirthankar takes meals. तीर्थंकरोंको आहार देने वालों के घर देवों के द्वारा की जाने वाली 5 प्रकार के रत्नों की वृष्टि “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] पंचरत्नवृष्टि – Pancharatnavrishti. Showering of jewels by details where thirthankar takes meals. तीर्थंकरोंको आहार देने वालों के घर देवों के द्वारा की जाने वाली 5 प्रकार के रत्नों की वृष्टि “
[[श्रेणी : शब्दकोष]] विदल – Vidala. Pulses (having two parts ) mixed with raw milk or curd, it is not edible according to Jaina phi-losophy. द्विदल; कच्चे दूध – दही – मट्ठा के साथ द्विदल (दो दल वाले दलहन ) पदार्थों के साथ मुख्य की लार का संबंध होने से असंख्य स्म्मुर्छन जीव राशि पैदा…
[[ श्रेणी:जैन_सूक्ति_भण्डार ]] [[ श्रेणी:शब्दकोष ]] == शास्त्र : == आलोचनागोचरे हार्थे शास्त्रं तृतीयलोचनं पुरुषाणाम्। —नीतिवाक्यामृत : ५-३५ आलोचना योग्य पदार्थों को जानने के लिए शास्त्र मनुष्य का तीसरा नेत्र है। अत: शास्त्र का स्वाध्याय करते रहना चाहिए।
[[श्रेणी:शब्दकोष]] पंचपरिवर्तन – Panchparivartana. Five kinds of natural changes related to matter region, time, realm of life and emotions. द्रव्य, क्षेत्र, काल एवं भाव में परिवर्तन “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] संयमलब्धि – स्थान – Sanyamalabdhi – Sthana. The stage for the attainment of restraints. जिस अवस्था विशेष में संयम लब्धि ठहरती हैं “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] वस्तुसमास – Vastusamaasa.: Name of the 18th part of scriptural knowledge (Shrutgyan). श्रुतज्ञान के 20 भेदों में 18 वां भेद “
उभयबंध Bilateral bondage (of body with soul and karmas). जीव और कर्म का परस्पर में एक दूसरे की अपेक्षा से होने वाला बंध।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
त्रसनाड़ी A channel or tunnel of mobile beings. लोक के बहु मध्य में एक राजु लम्बा और कुछ कम तेरह राजु ऊंचा बस जीवों का निवास क्षेत्र । [[श्रेणी: शब्दकोष ]]
[[श्रेणी:शब्दकोष]] वसु – Vasu.: A type of heavenly deities (Laukantik),Name of a king who went to hell because of telling lie.Eight in number. लौकंतिक देवों का एक भेद , एक राजा का नाम जो झूठ बोलने के कारण नरक में गया ,आठ की संख्या”
[[ श्रेणी:जैन_सूक्ति_भण्डार ]] [[श्रेणी:शब्दकोष ]] == कर्म-मुक्ति : == पक्के फलम्हि पडिए, जह ण फलं बज्झए पुणो विंटे। जीवस्स कम्मभावे, पडिए ण पुणोदयमुवेइ।। —समयसार : १६८ जिस प्रकार पका हुआ फल गिर जाने के बाद पुन: वृन्त से नहीं लग सकता, उसी प्रकार कर्म भी आत्मा से विमुक्त होने के बाद पुन: आत्मा (वीतराग) को…