निन्दा :!
[[ श्रेणी:जैन_सूक्ति_भण्डार ]] [[ श्रेणी:शब्दकोष ]] == निन्दा : == मा कस्स वि कुण णिंदं होज्जसु गुण—गेण्हजुज्जओ णिययं। —कुवलयमाला : ८५ किसी की निन्दा मत करो, गुणों को ग्रहण करने में उद्यम करो।
[[ श्रेणी:जैन_सूक्ति_भण्डार ]] [[ श्रेणी:शब्दकोष ]] == निन्दा : == मा कस्स वि कुण णिंदं होज्जसु गुण—गेण्हजुज्जओ णिययं। —कुवलयमाला : ८५ किसी की निन्दा मत करो, गुणों को ग्रहण करने में उद्यम करो।
[[श्रेणी:शब्दकोष]] स्निग्ध गुण – Snigdha Guna. Greasiness, smoothness.फ्ुद्गलों के स्नेह और रुक्ष दो गुणो मे एक गुण। चिकण्णपना अर्थात् चिकनाई, जिसके कारण परमाणुओ मे बंधा होता है।
[[ श्रेणी:जैन_सूक्ति_भण्डार ]] [[ श्रेणी:शब्दकोष ]] == लेश्या : == योगप्रवृत्तिर्लेश्या, कषायोदयानुरंजिता भवति। तत: द्वयो: कार्यं, बन्धचतुषक् समुद्दिष्टम्।। —समणसुत्त : ५३२ कषाय के उदय से अनुरंजित मन—वचन—काय की योग प्रवृत्ति को लेश्या कहते हैं। इन दोनों अर्थात् कषाय और योग का कार्य है चार प्रकार का कर्म—बन्ध। कषाय से कर्मों की स्थिति और अनुभाग बन्ध…
[[श्रेणी:शब्दकोष]] स्थूल ऋजुसूत्र नय – Sthuula Rjusuutra Naya. A view point related to the gross momentary state of something (body etc).अनेक समयवर्ती स्थूल पर्याय को जो ग्रहण करे वह नय, जैसे मनुष्यादि पर्याय।
[[श्रेणी : शब्दकोष]] वीर कवि –ViraKavi. Name of a great writer of ‘JambusamiChariu’ जम्बुसमी चरिउ, अपभ्रंश भाषा बद्ध ग्रन्थ के कर्ता ” समय ई १०१९ “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] स्थिति बंध अध्यवसाय स्थान – Sthiti Bamdha Adhyavasaaya Sthaana. Passionful thoughts causing binding of karmas with the soul.स्थितिबंध के लिये कारणभूत आत्मा के कषाय युक्त परिमाण। इनको कषाय अध्यवसाय स्थान भी कहते है।
उपभोग लोभ Greediness (in consumption etc.) . लोभ का एक भेद उपभोग वस्तुओं के प्रति आसक्ति।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
[[श्रेणी:शब्दकोष]] संजात – Sanjaata. Name of a the 5th Tirthankar (Jain Lord) of Videh Kshetra (region). विदेह क्षेत्रस्थ ५ वें तीर्थंकर इनका चिन्ह सूर्य एवं जन्म नगरी अलकापुरी हैं “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] स्थापना निक्षेप – Sthaapanaa Niksepa. Installation of a real form into its artificial one.धातु, काष्ठ, पाषाण आदि की प्रतिमा तथा अन्य पदार्थों मे यह वह है इस प्रकार की कल्पना करना स्थापना निक्षेप है।
ईशान इन्द्र A celestial deity, the 2nd one among all 12 types of Indras. ईशान स्वर्ग के उत्तर दिशा श्रेणीबद्ध विमान में ईशान नाम का दूसरा कल्पवासी इन्द्र रहता है।[[श्रेणी:शब्दकोष]]