चालिसिय!
चालिसिय A type of conduct deluding Karmas. चारित्र मोहनीय ; ४० कोटाकोटी स्थिति वाले बंध चालिसिय कहलाते हैं ।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
चालिसिय A type of conduct deluding Karmas. चारित्र मोहनीय ; ४० कोटाकोटी स्थिति वाले बंध चालिसिय कहलाते हैं ।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
त्रिभुवनस्वयंभू Son of the poet Svayambhu. कवि स्वयंभू के पुत्र जिसने वृहत्सर्वज्ञसिद्धि की रचना की । [[श्रेणी: शब्दकोष ]]
च्युत शरीर Expired body. कदलीघात मरण के बिना कर्म के उदय से झड़ने वाले आयुकर्म के क्षय से अपने आप पतित शरीर ।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
[[श्रेणी:शब्दकोष]] स्पर्श निक्षेप – Sparssana Niksepa. A type of Anuyogdwar (disquisition door).देखे- स्पर्ष अंतर विधान।
[[श्रेणी : शब्दकोष]] वेणु – Venu. Name of a deity of Ratnakut (summit) of Manushattar mountain, A protection deity of Shalmali tree, Acelestial deity (Indra) of Suparnakumar, A city of northemVijayardhmountain. मानुषोत्तर पर्वत के रत्नकूट का एक देव , शाल्मली वृष का रक्षक देव, सुपर्णकुमार भवनवासी देवो का इन्द्र, विजयार्ध की उत्तरश्रेणी का नगर “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] स्पर्ष – Sparssa. Touch, contact.छूना, स्पर्षन इन्द्रिय का विषय, यह 8 प्रकार का होता हंै- उष्ण, शीत, रुक्ष, स्निग्ध, कोमल, कठोर, लधु और गुरु।
[[ श्रेणी:जैन_सूक्ति_भण्डार ]] [[ श्रेणी:शब्दकोष ]] == विनम्र : == सयणस्स जणस्स पिओ, णरो अमाणी सदा हवदि लोए। णाणं जसं च अत्थं, लभदि सकज्जं च साहेदि।। —भगवती आराधना : १३७९ निरभिमानी मनुष्य जन और स्वजन, सभी को सदा प्रिय लगता है। वह ज्ञान, यश और संपत्ति प्राप्त करता है तथा अपना प्रत्येक कार्य सिद्ध कर…
[[श्रेणी:शब्दकोष]] स्थूल सूक्षम – Sthuula Suuksma. Disappearable bulky image of something which can only be seen (like shadow, smoke, sunlight etc).स्कंध के 6 भेदो मे एक भेद। जो स्कंध चक्षु इन्द्रिय के द्वारा ग्राहा होकर भी अन्य इन्द्रियो से ग्रहण नही किये जा सकते है। जैसे-छाया, धूप, चांदनी आदि।
[[श्रेणी : शब्दकोष]] वीरासन –Virasana. A posture of meditation. ध्यान या कायोत्सर्ग के योग्य एक आसन ” दक्षिण पैर रखना ” अपरनामपश्चाशन “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] स्थिति सत्त्व – Sthiti Sattva. Existing states of karmic binding with soul.जीव से सम्बद्व हुए या संचित कर्म स्कंध दूसरे समय से लेकर फल देने से पहले समय तक सत्त् संबा को प्राप्त होते है। अथवा सत्ता मे स्थित अनेक समयो मे बंधी प्रकृतियो की स्थिति के सत्तव को स्थिति सत्तव कहते है।