चक्रधर!
चक्रधर See – Ca´dradhara. देखें-चन्द्रधर ।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
[[श्रेणी:शब्दकोष]] प्रवर्तक (साधु)- जो ज्ञान से अल्प है परन्तु सर्व संघ की मर्यादा योग्य आचरण का जिसको ज्ञान है उसको प्रवर्तक साधु कहते है। Pravartaka ( Sadhu )- A type of Digamber Jain saints
[[श्रेणी : शब्दकोष]] मन – Mana. Mind , Consciousness. अन्तःकरण ” नोइन्द्रिय; जिसके द्वारा शिक्षा ग्रहण हो , तर्क – वितर्क हो , संकेत समझा जावे “
झांझ A cymbal, to be kept near the idol of Lord Jinendra, Passion, Anger, Wickedness. जिनेन्द्र देव की प्रतिमाओं के समीप विद्यमान रहने वाले अष्ट 108 मंगल द्रव्यों में ण्क चित्त का बुरा आवेग, क्रोध, दुष्टता । [[श्रेणी:शब्दकोष]]
[[श्रेणी:शब्दकोष]] प्रत्यक्षबाधित- pratyaksabadhita Refutable perception जिस साध्य की सिद्धी में प्रत्यक्ष से बाधा आये, जैसे अगिन ठंडी है।
[[श्रेणी : शब्दकोष]] विराट – Virata. Name of a country, the old name of Barar. एक देश, राजा विराट यहाँ के राजा थे वनवासी पांडवों ने छध्वेश में इसी का आश्रय लिया था (बरार देश का पूर्व नाम) “
[[ श्रेणी:जैन_सूक्ति_भण्डार ]] [[ श्रेणी:शब्दकोष ]] == महाव्रत : == अहिंसा सत्यं चास्तेनवंâ च, ततश्चाब्रह्मापरिग्रहं च। प्रतिपद्य पंचमहाव्रतानि, चरति धर्मं जिनदेशितं विद:।। —समणसुत्त : ३६४ अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह, ये पांच महाव्रत ग्रहण कर श्रमण जिनदेशना के अनुसार धर्म का आचरण करे।
[[श्रेणी : शब्दकोष]] बालिश्त – Balista. An area unit क्षेत्र का प्रमाण विशेष ” अपरनाम वितस्ति “
[[श्रेणी: शब्दकोष]]स्वसमय प्रवृत्ति – Svasamaya Pravrtti. Engrossment into self. स्वरुप मे चरण करना चारित्र है, स्वसमय मे प्रवृत्ति करना इसका अर्थ है। देखे-स्वसमय।
[[ श्रेणी:जैन_सूक्ति_भण्डार ]] [[ श्रेणी:शब्दकोष ]] == जिनवाणी : == जिनवचनमौषधमिदं, विषयसुखविरेचनम् अमृतभूतम्। जरामरणव्याधिहरणं, क्षयकरणं सर्वदु:खानाम्।। —समणसुत्त : १८ जिनवाणी वह अमृत समान औषधि है, जो विषय—सुखों का विरेचन करती है, जरा व मरण की व्याधि को दूर करती है और सभी दु:खों का क्षय करती है। लब्धमलब्धपूव, जिनवचन—सुभाषितं अमृतभूतम्। गृहीत: सुगतिमार्गो, नाहं मरणाद् बिभेमि।।…