चारों अनुयोगों की सार्थकता
चारों अनुयोगों की सार्थकता द्वादशांग श्रुतं भाव-श्रुतञ्चाप्युपलब्धये। चतुरनुयोगाब्धौ मेऽनिशमन्तोऽवगाह्यताम्।।७।। द्वादशांग श्रुत और भावश्रुत की उपलब्धि के लिये चारों अनुयोगरूपी समुद्र में मेरा मन नित्य ही अवगाहन करता रहे। जिनेन्द्र भगवान के मुखकमल से निर्गत पूर्वापर विरोधरहित जो वचन हैं उन्हें आगम कहते हैं। उसके ही प्रथमानुयोग, करणानुयोग, चरणानुयोग और द्रव्यानुयोग ये चार भेद हैं। इन…