महापुराण प्रवचन-२ श्रीमते सकलज्ञान, साम्राज्य पदमीयुषे। धर्मचक्रभृते भत्र्रे, नम: संसारभीमुषे।। जिनसेन स्वामी ने कहा है-यह युग का आद्य कथानक बताने वाला इतिहास है। सर्वप्रथम भगवान ऋषभदेव ने जहाँ जन्म लेकर दीक्षा ली वह प्रयाग तीर्थ सर्वभाषामय तीर्थ का उद्भव स्थल है। भरत के प्रश्न पर वृषभसेन गणधर ने अनेक उत्तर बताये उसी परम्परा में भगवान…
श्रुतपंचमी वैशाख सुदी दशमी के दिन भगवान् महावीर को केवलज्ञान प्रगट हुआ था, किन्तु गणधर के अभाव में छ्यासठ दिन तक उनकी दिव्यध्वनि नहीं खिरी। उस समय इन्द्र ने बुद्धिबल से इन्द्रभूति नामा ब्राह्मण को वहाँ उपस्थित किया। गौतम गोत्रीय इन्द्रभूति ने पाँच-पाँच सौ शिष्यों के साथ अपने भाई अग्निभूति और वायुभूति के साथ तथा…
षोडश संस्कार जैसे खान में से निकला स्वर्ण पाषाण योग्य निमित्त पाकर मूल्यवान बन जाता है और र्इंट, चूना, सीमेंट आदि वस्तुएँ कारीगर के संयोग से सुन्दर महल के रूप में परिवर्तित हो जाती हैं, उसी प्रकार मानव पर्याय में गर्भ में आते ही बालक-बालिकाएँ उपयोगी संस्कार मिल जावें तो योग्य बन सकते हैं। प्रथम…
श्रावक की षट् आवश्यक क्रियाएँ जो पुरुष देवपूजा, गुरु की उपासना, स्वाध्याय, संयम, तप और दान इन षट्कर्मों के करने में तल्लीन रहता है, जिसका कुल उत्तम है, वह चूली, उखली, चक्की, बुहारी आदि गृहस्थ की नित्य षट् आरंभ क्रियाओं से होने वाले पाप से मुक्त हो जाता है तथा वही उत्तम श्रावक कहलाता है।…
सुमेरू के नन्दनवन में बलभद्र आदि ९ कूट हैं-८ सुमेरू के नन्दनवन में बलभद्र आदि ९ कूट हैं-८ अथ नन्दनवनस्थव्यन्तरं सपरिकरमाह— बलभद्दणामकूडे णंदणगे मेरुपव्वदीसाणे। उदयमहियसयदलगो तण्णामो वेंतरो वसई१।।६२४।। बलभद्रनामकूटे नन्दनगे मेरुपर्वतैशान्याम्। उदयमहीकशतदलकः तन्नामा व्यन्तरो वसति।।६२४।। बलभद्द। मेरुपर्वतैशान्यां दिशि नन्दनस्थे शतोदयशतभूव्यासे तद्दलाग्रे बलभद्रनामकूटे बलभद्रनामा व्यन्तरो वसति।।६२४।। अथ नन्दनवनस्थवसतीनामुभयपाश्र्वस्थकूटादीन् गाथात्रयेणाह— णंदण मंदर णिसहा हिमवं रजदो य रुजयसायरया।…
मानव जीवन के विकास में वनस्पति की भूमिका वनस्पति मानव समाज के लिये एक ऐसी मूक सेविका है, जो सेवा के बदले में हमसे कुछ नहीं चाहती। मानव जीवन में वनस्पति का इतना महत्वपूर्ण योगदान है कि हम वनस्पति के बिना अपने जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते। जीवन की प्रत्येक आवश्यकता वनस्पति से…
महापुराण प्रवचन-०१० श्रीमते सकलज्ञान, साम्राज्य पदमीयुषे। धर्मचक्रभृते भत्र्रे, नम: संसारभीमुषे।। महानुभावों! आदिपुराण में आपने जाना है कि राजा महाबल स्वर्ग में ललितांग देव हुए और निर्नामा नाम की कन्या स्वयंप्रभा देवी हुई। दोनों वहाँ खूब सुखपूर्वक रह रहे थे। तभी ललितांगदेव की आयु के छह माह शेष रहने पर ललितांगदेव के वंâठ की माला मुरझाने…