सुदर्शनमेरु वंदना ।। मंगलाचरण ।। णमो अरिहंताणं, णमो सिद्धाणं, णमो आइरियाणं। णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सव्व साहूणं। सुदर्शनमेरु वंदना तीर्थंकरस्नपननीरपवित्रजात:, तुङ्गोऽस्ति यस्त्रिभुवने निखिलाद्रितोऽपि। देवेन्द्रदानवनरेन्द्रखगेन्द्रवंद्य:, तं श्रीसुदर्शनगिरिं सततं नमामि।।१।। यो भद्रसालवननंदनसौमनस्यै:, भातीह पांडुकवनेन च शाश्वतोऽपि। चैत्यालयान् प्रतिवनं चतुरो विधत्ते, तं श्रीसुदर्शनगिरिं सततं नमामि।।२।। जन्माभिषेकविधये जिनबालकानाम्, वंद्या: सदा यतिवरैरपि पांडुकाद्या:। धत्ते विदिक्षु महनीयशिलाश्चतसृ:, तं श्रीसुदर्शनगिरिं सततं नमामि।।३।।…
समवसरण स्तूप स्तुति शंभु छंद जय जय जिनवर के समवसरण, जय सप्तम भवन भूमि प्यारी। जय जय स्तूप जिन सिद्धबिंब, जय जय इनकी महिमा न्यारी।। जय जय स्तूप पर छत्र फिरें, बहुवर्णध्वजायें फहरातीं। जय मंगल द्रव्य वहां रक्खें, रत्नों की रचना मनभाती।।१।। इन भवन भूमियों में ऊँचे, बहु महल बने सुर युगलों के। संगीत नृत्य…
श्री ऋषभदेव भरत-बाहुबली स्तुति दोहा ज्ञान ज्योति में तव दिखे, लोक अलोक समस्त।नमूं नमूं मैं भक्ति से, मम पथ करो प्रशस्त।।१।। शंभु छंद जय जय आदीश्वर तीर्थंकर, तुम ब्रह्मा विष्णु महेश्वर हो।जय जय कर्मारिजयी जिनवर, तुम परमपिता परमेश्वर हो।।जय युगस्रष्टा असि मषि आदिक, किरिया उपदेशी जनता को।त्रय वर्ण व्यवस्था राजनीति, गृहिधर्म बताया परजा को।।२।।निज पुत्र…
श्री भरतस्वामी स्तुति दोहा निजानंद पीयूषरस, निर्झरणी निर्मग्न।नमूं नमूं नित भक्ति से, होऊँ गुण सम्पन्न।।१।। नरेन्द्र छंद चिन्मय ज्योति चिदंबर चेतन चिच्चैतन्य सुधाकर।जय जय चिन्मूरत चिंतामणि चिंतितप्रद रत्नाकर।।मरुदेवी के पौत्र आप हे यशस्वती के नंदन।हे स्वामिन्! स्वीकार करो अब मेरा शत-शत वंदन।।२।।आदिब्रह्मा ऋषभदेव से विद्या शिक्षा पाई।संस्कारों से संस्कारित हो आतम ज्योति जगाई।।भक्ति मार्ग…
श्री बाहुबलि स्तुति शंभु छंद जय जय श्रीबाहुबली भगवन्, जय जय त्रिभुवन के शिखामणी।जय जय महिमाशाली अनुपम, जय जय त्रिभुवन के विभामणी।।जय जय अनंत गुणमणिभूषण, जय भव्य कमल बोधन भास्कर।जय जय अनंत दग ज्ञानरूप, जय जय अनंत सुख रत्नाकर।।१।।तुम नेत्र युद्ध जल मल्ल युद्ध, में चक्रवर्ति को जीत लिया।चक्री ने छोड़ा चक्ररत्न, उसने भी तुम…
सिद्ध परमेष्ठी स्तुति दोहा सकल सिद्ध परमात्मा, निकल अमल चिद्रूप।नमूं नमूं नित भक्ति से, सिद्धचक्र शिव भूप।।१।। (चाल-हे दीन बंधु श्रीपति……) जै सिद्धचक्र मध्यलोक से भये सभी।जै सिद्धचक्र तीनकाल के कहे सभी।।जै जै त्रिलोक अग्रभाग पे विराजते।जै जै अनादि औ अनंत सिद्ध सासते।।२।।जो जम्बूद्वीप से अनंत सिद्ध हुए हैं।क्षारोदधी से भी अनंत सिद्ध हुए…