प्रशस्ति
जिनेन्द्र स्तुति संग्रह की प्रशस्ति चौबीस तीर्थंकर को वंदूं माँ सरस्वती को नमन करूँ।गणधर गुरु के सब साधु के श्री चरणों में नित शीश धरूँ।।इस युग में कुंदकुंदसूरी, का अन्वय जगत् प्रसिद्ध हुआ।इसमें सरस्वती गच्छ बलात्कार गण अतिशायि समृद्ध हुआ।।१।।इस परम्परा में साधु मार्ग, उद्धारक दिग्अंबर धारी।आचार्य शांतिसागर चारित्र—चक्रवर्ती पद के धारी।।इन गुरु के पट्टाधीश...