02.जिनवाणी स्तुति
जिनवाणी स्तुति करूँ भक्ति तेरी हरो दुख माता भ्रमण का।।टेर।। अकेला ही हूँ मैं कर्म सब आये सिमटि के। लिया है मैं तेरा शरण अब माता सटकि के।। भ्रमावत है मोकों करम दु:ख देता जनम का। करूँ भक्ति तेरी हरो दुख माता भ्रमण का।।१।। दुखी हुआ भारी, भ्रमत फिरता हूँ जगत में। सहा जाता नाहीं,...