दर्शन स्तुति
				दर्शन_स्तुति प्रभु पतितपावन मैं अपावन, चरन आयो सरन जी। यो विरद आप निहार स्वामी, मेट जामन मरन जी।।१।। तुम ना पिछान्या आन मान्या, देव विविध प्रकार जी। या बुद्धि सेती निज न जाण्यो, भ्रम गिण्यो हितकार जी।।२।। भव विकट बन में करम वैरी, ज्ञानधन मेरो हर्यो। सब इष्ट भूल्यो भ्रष्ट होय, अनिष्ट गति धरतो फिर्यो।।३।।...			
		 
				
			 
				
			 
				
			 
				
			 
				
			 
				
			 
				
			 
				
			