समवसरण चैत्यवृक्ष स्तोत्र
समवसरण चैत्यवृक्ष स्तोत्र गीता छंद बल्लीवनी को वेढ़कर, परकोट सुंदर स्वर्ण का।चउ गोपुरों से युक्त उससे, बाद चौथी भूमिका।। उपवन धरा के चार दिश में, चैत्यद्रुम अति सोहने।उनके जिनेश्वर बिंब को, हम वंदते मन मोहने।।१।। वृषभेश जिनके समवसृति में, वनधरा में पूर्वदिश।वन है अशोक कहा वहाँ, तरु हैं कुसुम पत्रों भरित।। उन मध्य एक अशोक...