सोलह कारण स्तुति
सोलह कारण स्तुति दोहा स्वातमरस पीयूष से, तृप्त हुये जिनराज।सोलह कारण भावना, भाय हुये सिरताज।।१।। सोमवल्लरी छंद (चामर) दर्श की विशुद्धी जो पचीस दोष शून्य है।आठ अंग से प्रपूर्ण सात भीति शून्य है।। सत्य ज्ञान आदि तीन रत्न में विनीत जो।साधुओं में नम्रवृत्ति धारता प्रवीण वो।।२।। शील में व्रतादि में सदोषवृत्ति ना धरें।विदूर अतीचार से...