गणिनी ज्ञानमती माताजी की वैराग्य भावना
गणिनी ज्ञानमती माताजी की वैराग्य भावना दोहा सिद्ध हुए जो भी मनुज, कर्म अरी को जीत। उनके पद को नमन कर, करूँ सिद्धि से प्रीत।।१।। भव भव की जो भावना, भाई इस भव माँहि। वही सफल हो कामना, हो भव का भ्रम नाहिं।।२।। शेर छंद संसार के दुख से हुए भयभीत जो प्राणी।उनके लिए हितकारि...