आलुंच्छन!
आलुंच्छन A form of self criticism. आलोचना के 4 स्वरूपों में एक भेद- कर्मरूपी वृक्ष का मूल छेदने में समर्थ ऐसा समभावरूप स्वाधीन निज परिणाम।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
आलुंच्छन A form of self criticism. आलोचना के 4 स्वरूपों में एक भेद- कर्मरूपी वृक्ष का मूल छेदने में समर्थ ऐसा समभावरूप स्वाधीन निज परिणाम।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
[[श्रेणी:शब्दकोष]] वर्षायोग – Varshaayoga.: Four months rainy seasonal staying of Jain saints at some particular place with particular restrictions. चातुर्मास; जैन साधु – साध्वियों का वर्षाकाल (आषाढ़ शुक्ला चतुर्दशी से कार्तिक कृष्णा अमावस तक ) में मुख्यतः जीव विराधना से बचने हेतु एक स्थान पर रहना ” वर्षायोग सम्बन्धी प्रतिष्ठापना व निष्ठापना की विशेष विधि…
देव भवन Abode of deities. चारों निकायों के देवों के भवन (प्रत्येक भवनों में जिनमंदिर होते हैं)। [[श्रेणी: शब्दकोष ]]
[[श्रेणी:शब्दकोष]] वर्तमान ग्राही नय – Vartmaana Graahii Naya.: A standpoint believing the present mode (Paryay). ऋजुसूत्र नय , जो भूत भावी पर्याय को छोड़कर वर्तमान पर्याय को ही ग्रहण करता है “
[[श्रेणी : शब्दकोष]] ब्रह्म (स्वर्ग) – Brahma (Svarga). Name of the 3rd Patal (layer) of Brahmayugal and the fifth particular place of heaven. ब्रह्रायुगल का तृतीय पटल, कल्पवासी स्वर्गों का पाँचवा कल्प “
[[ श्रेणी:जैन_सूक्ति_भण्डार]] [[ श्रेणी:शब्दकोष ]] == नय : == तह ववहारेण विणा, परमत्थुवएसणमसक्कम्। —समयसार : ८ व्यवहार (नय) के बिना परमार्थ (शुद्ध आत्मतत्त्व) का उपदेश करना अशक्य है। स्वाश्रितो निश्चय:। —अध्यात्म सूत्र : १-८ स्व अर्थात् उस ही एक द्रव्य के आश्रय से जो बोध है, वह निश्चय—नय है। पराश्रितो व्यवहार:। —अध्यात्म सूत्र : १-९…
[[श्रेणी : शब्दकोष]] भूपाल चतुर्विशतिका टीका – Bhupala chaturvishtika Tika. Name a commentary book written by pandit Ashadhar. पं. आशाधर (ई. ११७३-१२४३) कृत संस्क्रत टीका “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] सूत्रसम – Sutrasama. Scriptural knowledge possessed by the Gandhardev, the chief disiple of Tirthankar (Jaina-Lord). तीर्थकर के मुख से निकला बीजपद सूत्र कहलाता है और जो उस सूत्र से उत्पन्न होता है वह गणधरदेव में स्थित श्रुतज्ञान ’सुत्रसम’ कहा गया है।
इक्षुरस Juice of sugar cane. गन्ने का रस Sugar-cane juice. गन्ने का रस जिससे शक्कर गुड आदि बनते है। इस युग के प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव ने एक वर्ष उन्तालीस दिन के उपवास के पश्चात हस्तिनापुर में राजा श्रेयांस द्वारा इक्षुरस का प्रथम आहार ग्रहण किया था। Seventh island and ocean of middle universe. मध्यलोक…