प्रबंधनकाल!
[[श्रेणी:शब्दकोष]] प्रबंधनकाल- बंधते अर्थात एकत्व को प्राप्त होते हैं जिसमें उसे प्रबंधन कहते हैं प्रबंधन प्रबन्णन रुप जो काल है ह प्रबन्णनकाल कहलाता है। prabamdhanakala – period of organisation (organising)
[[श्रेणी:शब्दकोष]] प्रबंधनकाल- बंधते अर्थात एकत्व को प्राप्त होते हैं जिसमें उसे प्रबंधन कहते हैं प्रबंधन प्रबन्णन रुप जो काल है ह प्रबन्णनकाल कहलाता है। prabamdhanakala – period of organisation (organising)
[[श्रेणी:शब्दकोष]] प्रवचनसार टीका- प्रवचनसार ग्रंथ पर 1. आचार्य अमृतचन्द्र (ई. 905-955) कृत एक संस्कृत टीका “तवप्रदीपिका”, 2. आचार्य जयसेन ( ई. 11-12 अथवा 12-13) कृत “तात्पर्यवृŸिा” संस्कृत टीका। PravacanasaraTika- A commentary book on ‘Pravachanasar’ written by acharyaAmritchandra
[[श्रेणी:शब्दकोष]] पदक्षिणा वर्त- बाई ओर से दांई ओर घूमना, श्रद्धापूर्ण अभिवादन जो इस प्रका प्रदक्षिण द्वारा किया जाये। pradaksina varta – taking round of circumambulation.
[[श्रेणी:शब्दकोष]] प्रमोद- मुख की प्रसन्नता आदि के द्वारा भीतर की भक्ति और अनुराग का व्यक्तहोना। यतियों के गुधें का विखर करके उनके गुधें में हर्श मानना यह प्रमोद भावना का लक्षण है। Pramoda- Joy, pleasure, delight
उपमान-उपमेय संबंध Mutual relation between the objects of compa-rison. वह संबंध जिससे किसी की तुलना की जाये वह उपमान एंव जो तुलना करने करने के योग्य हो वह उपमेय।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
[[श्रेणी:शब्दकोष]] प्रत्येक बोधित- देखें- प्रत्येक बुद्ध। pratyeka bodhita – see (pratyeka buddha)
उपनिषद भाष्य A book written by ‘Sureshvarji’. वेदान्त साहित्य प्रवर्तक शंकर के शिष्य सुरेश्वर (ई.820) कृत एक ग्रंथ।[[श्रेणी:शब्दकोष]]