प्रशस्त राग!
[[श्रेणी:शब्दकोष]] प्रशस्त राग- देव शास्त्र गुरु के प्रति भक्तिरूपी राग प्रषस्त राग है। Prasasta raga- Devotion in the prayer of Lord, guru etc
[[श्रेणी:शब्दकोष]] प्रशस्त राग- देव शास्त्र गुरु के प्रति भक्तिरूपी राग प्रषस्त राग है। Prasasta raga- Devotion in the prayer of Lord, guru etc
[[श्रेणी : शब्दकोष]] भुजंगशाली – Bhujangashali. A type of peripatetic deities. महोरग जातिय व्यंतर देवों का एक भेद “
[[श्रेणी : शब्दकोष]] भाव आस्त्रव – Bhava Asrava. Emotions with passion etc. which cause flow of Karmas – are called Bhava Asrava. आत्मा के रागादि भाव जिनसे कर्म आते हैं “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] प्रविचार- मैथुन के उपसेवन को प्रविचार कहते है। Pravicara- Sexual enjoyment
गारूडी विद्या Knowledge which removes the venomous effect by incantation. सर्प के विष को दूर करने वाली विद्या।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
[[श्रेणी:शब्दकोष]] प्रत्यभिज्ञान- pratyabhijnana Recognition वह यही है इस प्रकार के स्मरण को प्रत्यभिज्ञान कहते है।
[[श्रेणी:शब्दकोष]] प्रतीकार- pratikara Retaliation, retribution, revenge, counter action. प्रतिरोध या विरोध करना।
[[श्रेणी : शब्दकोष]] विनयशुध्दि – Vinayashuddhi. Reverential purity. कीर्ति, आदर आदि लौकिक फलों की इच्छा छोडकर साधर्मी जन, गुरुजन, इत्यादिकोण का विनय करना विनय शुद्धि है “
[[श्रेणी : शब्दकोष]] भाव प्राण – Bhava Prana. Psychical vitalities. सम्यग्दर्शन, ज्ञान व चारित को भाव प्राण कहा है ” अथवा आत्मा की जिस शक्ति से इंद्रिय आदि अपने कार्य में प्रवर्तन करें “
[[श्रेणी: शब्दकोष]]स्वस्थान अप्रमत्त – Svasthaana Apramatta. The first phase of the 7th spiritual stage of development-unstable stage of meditation. सतवे गुणस्थान के दो भेदो मे प्रथम भेद। जब तक चारित्रमोहनीय की 21 प्रकृतियो के उपषमन तथा क्षपण के कार्य का प्रारम्भ नही होता, किन्तु संज्वलन के मंदोदय के कारण प्रमाद भी नही होता, केवल सामान्य…