[[श्रेणी:मध्यलोक_के_जिनमंदिर]] == विजयद्वार का एवं उनमें जिनप्रतिमाओं का वर्णन विजयंतवेजयंतं जयंतअपराजयंतणामेिंह।। चत्तारि दुवाराइं जंबूदीवे चउदिसासुं१।।४१।। पुव्वदिसाए विजयं दक्खिणआसाय वइजयंतं हि। अवरदिसाय जयंतं अवराजिदमुत्तरासाए।।४२।। एदाणं दाराणं पत्तेक्कं अट्ठ जोयणा उदओ। उच्छेहद्धं रुंदं होदि पवेसो वि वाससमं।।४३।। ८। ४। ४। वरवज्जकवाडजुदा णाणाविहरयणदामरमणिज्जा। णिच्चं रक्खिज्जंते वेंतरदेवेिह चउदारा।।४४।। दारोवरिमपएसे पत्तेक्कं होदि दारपासादा। सत्तारहभूमिजुदा णाणावरमत्तवारणया।।४५।। दिप्पंतरयणदीवा विचित्तवरसालभंजिअत्थंभा। धुव्वंतधयवडाया विविहालोच्चेिह रमणिज्जा।।४६।।…
[[श्रेणी:कुन्दकुन्द_वाणी]] == श्रावक धर्म संकलनकर्त्री- गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी हिन्दी पद्यानुवादकर्त्री- आर्यिका चंदनामती चारित्र के दो भेद— जिणणाणदिट्ठिसुद्धं, पढमं सम्मत्तचरणचारित्तं। विदियं संजमचरणं, जिणणाणसदेसियं तं पि।।। (चारित्रपाहुड़ गाथा-५) शंभु छन्द— सम्यक्तवचरण चारित्र प्रथम, श्री जिनवर ने उपदेशा है। जो सम्यग्दर्शन और ज्ञान, से शुद्ध चरित निर्देशा है।। दूजा है संयमचरण चरित जो, सकल विकल द्वयरूप कहा।…
कुंथलगिरि सिद्धक्षेत्र ही प्राचीन रामगिरि है प्रस्तुति-आर्यिका स्वर्णमती (संघस्थ) वर्तमान कुंथलगिरि सिद्धक्षेत्र (महा.) ही प्राचीन काल का वंशधर पर्वत अथवा रामगिरि है, इस संदर्भ में पूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी से चर्चा होने पर जो तथ्य प्रकाशित हुए, वो यहाँ प्रस्तुत हैं- आर्यिका स्वर्णमती-पूज्य माताजी! वंदामि। आपके मुख से कई बार सुनने में आता है…
महारानी केकसी महारानी केकसी अपने राजमहल में सोयी हुई हैं। रत्नों के दीपकों का प्रकाश फैल रहा है। चारों ओर पहरे पर खड़ी हुई स्त्रियाँ निद्रा रहित होकर महारानी की रक्षा में तत्पर हैं। पिछली रात्रि में रानी आश्चर्यकारी कुछ स्वप्नों को देखती हैं। प्रभात के समय तुरही की ध्वनि से और चारण लोगों के…
क्षपक की मनोवैज्ञानिकता सल्लेखना के सन्दर्भ में जीवन और मृत्यु का अनादि प्रवाह तब तक है, जब तक जीव की मुक्ति नहीं हो जाती। जो जीवन के सौन्दर्य व शित्व को पहचान लेते हैं, उनके लिए मृत्यु, मंगल महोत्सव बन जाती है। जैसे रात्रि में अरुणोदय होता है और अरुणोदय में ही रात्रि का निर्माण…
[[श्रेणी:03.तृतीय_अधिकार]] == ध्याता कैसा होता है ? जिस कारण से तप, श्रुत औ व्रत, इनका धारक जो आत्मा है।वह ध्यानमयी रथ की धुर का, धारक हो ध्यान धुरंधर है।।अतएव ध्यान प्राप्ती हेतू, इन तीनों में नित रत होवो।तप, श्रुत औ व्रत बिन ध्यान सिद्धि, नहिं होती अत: व्रतिक होवो।।५७।। जिस हेतु से तप, श्रुत और…
इन्द्रध्वज विधान का महत्त्व सुधा —-जीजी! आपने तो इस चातुर्मास में आर्यिका श्री ज्ञानमती माताजी के पास बहुत कुछ अध्ययन किया होगा, बताओ तो सही, क्या-क्या पढ़ा है? मालती -हाँ सुधा! अध्ययन तो किया है किन्तु बहुत कुछ न करके मात्र एक संस्कृत व्याकरण का ही अध्ययन किया है। चूँकि माताजी की चातुर्मास में दैनिक…
मोक्षमार्गता में संस्कार की महत्ता प्रतिष्ठाचार्य पं. विमलकुमार जैन सोंरया प्रियाद् भव संस्कार (प्रसूति होने पर) जिस दिन संतान का जन्म हो उसी दिन जात कर्म रूप मंत्र व पूजन का बड़ा भारी पूजन विधान किया जाता है। चूंकि जन्म का १० दिन का सूतक होता है। अत: अन्य गृहस्थाचार्य जिसे सूतक न लगा हो…
प्रत्युपकार शशिप्रभा-बहन कनकलता! उपकार का बदला प्रत्युपकार से अवश्य ही चुकाना चाहिए। कनकलता–हाँ बहन! जो उपकारी का उपकार भूल जाते है और उसका प्रत्युपकार नहीं करते हैं वे महापापी कहलाते हैं। सुनो, प्रत्युपकारी सुग्रीव की कथा मैं तुम्हें सुनाती हूँ। किष्विंधापुरी का राजा सुग्रीव आपत्ति से घबराया हुआ श्रीरामचन्द्र की शरण में आया। शिष्टाचार के…