देवी पद्मावती ने जैन न्याय को समृद्ध बनाया
देवी पद्मावती ने जैन न्याय को समृद्ध बनाया प्रस्तुति – आचार्य श्री विद्यानन्दि मुनि महाराज अन्यथानुपपन्नत्वं, यत्र तत्र त्रयेण किम्।नान्याथानुपपन्नत्वं, यत्र तत्र त्रयेण किम्। -(धवला, आचार्य वीरसेन, पु.१३, पृष्ठ २४६) जहाँ अन्यथानुपपत्ति या अविनाभाव है वहाँ त्रैरूप्य मानने से कोई लाभ नहीं, जहाँ अन्यथानुपपत्ति नहीं है वहाँ भी त्रैरूप्य माना व्यर्थ है । यथा-‘पर्वत अग्निवाला…