कृतिकर्म विधि कृतिकर्म विधिश्रीमते वर्धमानाय, नमो नमितविद्विषे। यज्ज्ञानान्तर्गतं भूत्वा, त्रैलोक्यं गोष्पदायते।।१।। जिनेन्द्र भगवान के दर्शन करते समय तथा सामायिक आदि करते समय जो हाथ जोड़ना, पंचांग नमस्कार करना आदि क्रियाएँ की जाती हैं, उसका नाम ही कृतिकर्म है। इस कृतिकर्म को विधिवत् करने के लिए यहाँ शास्त्रीय प्रमाण प्रस्तुत किये जा रहे हैं- जिनेन्द्र भगवान…
गृहचैत्यालय के आगमप्रमाण यह आलेख परमपूज्य आचार्य श्री विद्यानन्दजी मुनिराज की डायरी से परमपूज्य एलाचार्य श्री प्रज्ञसागरजी मुनिराज द्वारा संपादित किया गया है । आशा है इसे पढ़कर सुधी पाठकों की जिज्ञासाओं का समाधान होगा। १. जिज्ञासा : घर में चैत्यालय; स्थापना कर सकते हैं क्या ? समाधान : शास्त्रों में घर में चैत्यालय की…
जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं रीति, प्रीति, नीति हमारे आचरण और व्यवहार पर पूरे संसार की दृष्टि जमी है। सभी उस मार्ग का अनुसरण करते हैं जिस पर महाजन चलते हैं। महा यीन महान और जन मानी व्यक्ति । हम इसलिये विश्व गुरू कहलाये। यह पद हमारे को यूं ही नहीं मिल गया । इसके…
जिन–नामस्मरण की महिमा ‘जअहिं जिणवर सोम अकलंक, सुरसण्णुअ विगअभअ । राअ-रोस-मअ-मोहवज्जिअ, मअणणासण भवरहिअ ।। विसअ सअल तइंदेव णिवज्जिअ ।।२०,५।। अर्थ– हे जिनवर ! आप निर्भर, सोम्य, अकलंक हैं, देवों से वन्दित हैं। आप राग, रोष, मद, मोह से रहित तथा काम के प्रभाव एवं भव से रहित हैं। हे देव ! आप में सम्पूर्ण विषय…
गुरू पूर्णिमा महोत्सव मनुष्य जीवन में माता पिता और गुरु का महत्व विश्व भर में सर्वोपरि माना जाता है । माता पिता का इसलिये कि वे हमें जन्म देते हैं और गुरु इसलिये कि गुरू ही वास्तव में हमे मानव, इन्सान, मनुष्य बनाते है मनुष्यता, मानवीयता या इन्सानियत के संस्कार देते हैं। इस प्रकार गुरु…
नांदीमंगल विधि ( यहाँ प्रतिष्ठा की सम्पूर्ण विधि श्री नमिचन्द्र सैद्धान्तिकदेव द्वारा रचित प्रतिष्ठातिलक ग्रन्थ के अनुसार दी जा रही है । ) व्यासमध्यमसंक्षेपभेदतः सा त्रिधा मता । तत्र व्यासप्रतिष्ठा तु पूर्वमत्राभिधीयते ।। 5 ।। प्रतिष्ठा मध्यमा पश्चात्संक्षिप्ता सा ततः परम् । सिद्धादीनां प्रतिष्ठातस्तत उत्सवसंविधिः।। 6 ।। तत्र व्यासप्रतिष्ठा सा पंचकल्याणलक्षणा । वक्ष्यतेऽद्य प्रपंचेन प्रयोगैर्लक्षणान्वितैः…
विद्युत्प्रभ गजदंत पर्वत पर ९ कूट विद्युत्प्रभ पर्वत के ऊपर सिद्ध, विद्युत्प्रभ नामक, देवकुरु, पद्म, तपन, स्वस्तिक, शत उज्ज्वल (शतज्वाल), सीतोदा और हरि, इन नामों से भुवन में विख्यात और अनुपम आकार वाले नौ कूट हैं। इन कूटों की उँचाई अपने पर्वत की उँचाई के चतुर्थ भागप्रमाण है।।२०४५-२०४६।। उन कूटों की लम्बाई और विस्तारविषयक उपदेश…