08.अनित्यत्वाधिकार!
अनित्यत्वाधिकार (२५३) जिसके अंदर है दयाभाव वह नाश किसी का नहिं करता। पर जिनप्रभु की वाणी ऐसी पल भर में मोह रिपू मरता।। वह दयावान होकर के भी योगी का मोह नष्ट करती। ऐसी वाणी के धारक प्रभु जयवंत रहें यह है विनती।। ( २५४) यदि इक दिन खाया ना जाये अथवा…
 
				
			 
				
			