निश्चयपञ्चाशत्
निश्चयपञ्चाशत् -आर्या- दुर्लक्ष्यं जगति परं ज्योतिर्वाचां गण: कवीन्द्राणाम्। जलमिव वङ्को यस्मिन्नलब्धमध्यो बहिर्लुठति।।१।। अर्थ —जिस प्रकार जल हीरा नामक रत्न के अंदर प्रवेश नहीं करता है और बाहिरीभाग में ही रहा आता है उसी प्रकार जिस चैतन्यस्वरूप ज्योति में बड़े—बड़े कवियों की वाणी भी प्रवेश नहीं कर सकती, बाहिरी भाग में ही रह जाती है ऐसा…