कल्पवृक्षों की भूमि केरल
कल्पवृक्षों की भूमि केरल सोलहवीं सदी के एक अज्ञातनाम नंपूतिरि कवि ने रचना ‘चद्रोत्सव’ में केरल की प्रशंसा में अपने उद्गार इस प्रकार प्रकट किए हैं— परमृतमोषि चटटु मटटु खण्डड ड लेटटु पटविलुमधिक हृधं दक्षिणम भारताख्यम। विलनिलमलरमातिन्न गजन्नुं त्रिलोको चेरू नाटु कुरि पोले चेरमान् नाटु यस्मिन्।। अर्थात् हे परभूतवाणि चारों तरफ आठ और खण्ड हैं।…