90. सौधर्म आदि स्वर्गों में विमानों का वर्णन
सौधर्म आदि स्वर्गों में विमानों का वर्णन सोहम्मादिचउक्के कमसो अवसेसछक्कजुगलेसु। …
सौधर्म आदि स्वर्गों में विमानों का वर्णन सोहम्मादिचउक्के कमसो अवसेसछक्कजुगलेसु। …
कैलाशपर्वत पर भरत चक्रवर्ती ने जिनमंदिर बनवाये थे (पद्मपुराण से) अथानन्तर एक बार दशानन नित्यालोक नगर में राजा नित्यालोक की श्रीदेवी से समुत्पन्न रत्नावली नाम की पुत्री को विवाह कर बड़े हर्ष के साथ आकाशमार्ग से अपनी नगरी की ओर आ रहा था। उस समय उसके मुकुट में जो रत्न लगे थे उनकी किरणों से…
अर्हं मंत्र में पंचपरमेष्ठी विराजमान हैं अर्हमित्यक्षरब्रह्म वाचकं परमेष्ठिन:। सिद्धचक्रस्य सद्बीजं, सर्वत: प्रणिदध्महे।।११।। कर्माष्टकविनिर्मुत्तंक, मोक्षलक्ष्मीनिकेतनम्। सम्यक्त्वादिगुणोपेतं, सिद्धचक्रं नमाम्यहम्।।१२।। आकृष्टिं सुरसंपदां विदधते, मुक्तिश्रियो वश्यतां। उच्चाटं विपदां चतुर्गतिभुवां, विद्वैषमात्मैनसाम्।। स्तम्भं दुर्गमनं प्रति प्रयततो, मोहस्य सम्मोहनम्। पायात्पंचनमस्क्रियाक्षरमयी, साराधना देवता।।१३।। (पद्यानुवाद) शंभु छंद ‘‘अर्हं’’ यह अक्षर है, ब्रह्मरूप परमेष्ठी का वाचक। सिद्धचक्र का सही बीज है, उसको नमन करूँ…
हरिषेण चक्रवर्ती ने अगणित जिनमंदिर बनवाये अथासावन्यदापृच्छत् सुमालिनमुदद्भुतः। उच्चैर्गगनमारूढो विनयानतविग्रहः।।२७२।। सरसीरहितेऽमुष्मिन् पूज्यपर्वतमूद्र्धनि। वनानि पश्य पद्मानां जातान्येतन्महाद्भुतम्।।२७३।। …
पांच स्थावर के चार-चार भेदों में दो-दो निर्जीव हैं। पृथिव्यप्तेजोवायुवनस्पतयः स्थावराः।।१३।। पृथिवी च आपश्च तेजश्च वायुश्च वनस्पतिश्च पृथिव्यप्तेजोवायुवनस्पतयः। तिष्ठन्ति इत्येवंशीलाः स्थावराः। एते पृथिव्यादय एकेन्द्रियजीवविशेषाःस्थावरनामकर्मो-दयात् स्थावराःकथ्यन्ते। ते तु प्रत्येक चतुर्विधाः-पृथिवी,पृथिवीकायः, पृथिवीकायिकः पृथिवीजीवः।आपः,अप्कायः,अप्कायिकः, अप्जीवः। तेजः, तेज:कायः, तेजकायिकाः तेजोजीवः। वायुः, वायुकायः, वायुकायिकाः, वायुजीवः। वनस्पतिः, वनस्पतिकायः, वनस्पतिकायिकः,वनस्पतिजीव इति। तत्र अध्वादिस्थिता धूलिः पृथिवी। इष्टकादिः पृथ्विीकायः। पृथ्वीकायिक-जीवपरिहृतत्वात् इष्टकादिः पृथ्वीकायःकथ्यते मृतमनुष्यादिकायवत् ।…
षट्खंडागम आदि ग्रन्थ पूर्ण प्रमाण हैं एत्तो उवरि पयदं परूवेमो- लोहाइरिये सग्गलोगं गदे आयार-दिवायरो अत्थमिओ। एवं बारससु दिणयरेसु भरहखेत्तम्मि अत्थमिएसु सेसाइरिया सव्वेसिमंग-पुवाणमेगदेसभूद-पेज्जदोस-महाकम्मपयडिपाहुडादीणं धारया जादा। एवं पमाणीभूदमहरिसिपणालेण आगंतूण महाकम्मपयडिपाहुडामियजलपवाहो धरसेणभडारयं संपत्तो। तेण वि गिरिणयरचंदगुहाए—भूदबलि-पुप्फदंताणं महाकम्मपयडिपाहुडं सयलं समप्पिदं। तदो भूदबलिभडारएण सुदणईपवाहवोच्छेदभीएण भवियलोगाणुग्गहट्ठं महाकम्मपयडिपाहुडमुवसंहरिऊण छखंडाणि कयाणि। तदो तिकालगोयरासेसपयत्थ विसयपच्चक्खाणंत केवलणाणप्पभावादो पमाणीभूदआइरियपणालेणागदत्तादो दिट्ठिट्ठविरोहाभावादो पमाणमेसो गंथो। तम्हा मोक्खवंâखिणा भवियलोएण अब्भसेयव्वो।…
सुलोचना ने जिनमंदिर व जिनप्रतिमाएँ बनवाई कारयन्ती जिनेन्द्रार्चाश्चित्रा मणिमयीर्बहूः। तासां हिरण्मयान्येव विश्वोपकरणान्यपि।।१७३।। तत्प्रतिष्ठाभिषेकान्ते महापूजाः प्रकुर्वती। मुहुः स्तुतिभिरथ्र्याभिः स्तुवती भक्तितोऽर्हतः।।१७४।। ददती पात्रदानानि मानयन्ती महामुनीन्। शृण्वती धर्ममाकण्र्य भावयन्ती मुहुर्मुहुः।।१७५।। आप्तागमपदार्थांश्च प्राप्तसम्यक्त्वशुद्धिका। अथ फाल्गुननन्दीश्वरेऽसौ भक्त्या जिनेशिनाम्।।१७६।। विधायाष्ठाह्निकीं पूजामभ्यच्र्यार्चा यथाविधि। कृतोपवासा तन्वङ्गी शेषां दातुमुपागता।।१७७।। नृपं सिंहासनासीनं सोऽप्युत्थाय कृताञ्जलिः। तद्दत्तशेषामादाय निधाय शिरसि स्वयम्।।१७८।। उपवासपरिश्रान्ता पुत्रिके त्वं प्रयाहि ते। शरणं पारणाकाल…
साधु के २८ मूलगुण भिन्न प्रकार से हैं साधु परमेष्ठी के २८ गुण-दस सम्यक्त्चगुण, मत्यादि पाँच ज्ञानगुण अौर तेरह प्रकार का चारित्र, ये साधु के २८ गुण माने गये हैं। इनमें से सम्यक्त्च के दस गुण इस प्रकार हैं :- १. आज्ञासम्यक्त्व, २. मार्गसम्यक्त्व, ३. उपदेशसम्यक्त्व, ४. सूत्रसम्यक्त्व, ५. बीजसम्यक्त्व, ६. संक्षेपसम्यक्त्व, ७. विस्तारसम्यक्त्व, ८….
जब धर्म का ह्रास होने लगता है तब तीर्थंकर भगवान जन्म लेते हैं। अनेकेऽत्र ततोऽतीते काले रत्नालयोपमे। नाभेययुगविच्छेदे जाते नष्टसमुत्सवे।।२०४।। अवतीर्य दिवो मूध्र्नःकर्तुं कृतयुगं पुनः। उद्भूतोऽस्मि हिताधायी जगतामजितो जिनः।।२०५।। आचाराणां विघातेन कुदृष्टीनां च संपदा। धर्मं ग्लानिपरिप्राप्तमुच्छ्रयन्ते जिनोत्तमाः।।२०६।। ते तं प्राप्य पुनर्धर्मं जीवा बान्धवमुत्तमम्। प्रपद्यन्ते पुनर्मार्गं सिद्धस्थानाभिगामिनः।।२०७।। तदनन्तर बहुत काल व्यतीत हो जाने पर जब…
पुण्य की महिमा का वर्णन चक्रायुधोऽयमरिचक्रभयंकरश्रीराक्रम्य सिन्धुमतिभीषणनक्रचक्रम्। चव्रे वशे सुरमवश्यमनन्यवश्यं पुण्यात् परं न हि वशीकरणं जगत्याम्।।२१६।। शत्रुओं के समूह के लिए जिनकी सम्पत्ति बहुत ही भयंकर है ऐसे चक्रवर्ती भरत ने अत्यन्त भयंकर मगरमच्छों के समूह से भरे हुए समुद्र का उल्लंघन कर अन्य किसी के वश न होने योग्य मागध देव को निश्चितरूप से…