जान बची तो लाखों पाये (भक्तामर के तृतीय व चतुर्थ काव्य से सम्बन्धित कथा) ‘‘हे स्वामिन्! नमोऽस्तु, नमोऽस्तु; नमोऽस्तु, अगच्छ, अगच्छ, अगच्छ; अन्न-जल शुद्ध है; स्वामिन् आईये!’’… की मधुर स्वर लहरी एक बार पुनः वायुमंडल में थिरक उठी! नव यौवन दम्पत्ति के सु-मधुर कण्ठों से एक साथ निकला हुआ यह स्वर केवल जड़ शब्दों के…
बुढ़ापे के बाद जाना है एक सम्राट था। उसका परिवार बड़ा विराट था। विराट इस मायने में था कि उसके सौ पुत्र थे। सम्राट बूढ़ा हो गया पहले के जमाने में बुढ़ापा देखकर लोगों को चिंता हो जाती थी परलोक की। वह सोचने लगता था कि बुढ़ापे का अर्थ है मौत का पैगाम। जन्म के…
अग्नि परीक्षा श्री रामचन्द्र अपने सिंहासन पर आरूढ़ हैं। सुग्रीव, हनुमान, विभीषण आदि आकर नमस्कार कर निवेदन करते हैं- ‘‘प्रभो! सीता अन्य देश में स्थित है उसे यहाँ लाने की आज्ञा दीजिए।’’ रामचन्द्र गर्म निःश्वास लेकर कहते हैं- ‘‘बंधुओं! यद्यपि मैं उसके विशुद्ध शील को जानता हूँ फिर भी लोकापवाद से त्यक्त हुई सीता का…
आटे का मुर्गा ( यशोधर महाराज का चरित्र) (१) उज्जयिनी नगरी में चारों तरफ हर्ष और विषाद का वातावरण एक साथ दिख रहा है। महाराजा यशोध अपने पुत्र यशोधर का राज्याभिषेक महोत्सव सम्पन्न कर चुके हैं। उसके मस्तक पर अपना पट्टबंध रखकर स्नेह से भरे शब्दों में कह रहे हैं- ‘‘बेटा यशोधर! जैसे मैंने अपने…
भोग से योग की ओर (काव्य सत्रह से सम्बन्धित कथा) अपने पुरुषार्थ से तीनों लोकों को भी एक सूत्र में बांध देने वाला मानव जिसके सम्मुख अपने घुटने टेकता है-उस शूरवीर का नाम क्या आप को ज्ञात है? बड़े-बड़े तपस्वियों, दार्शनिकों, ज्ञानियों, शास्त्रों, पुराणों आदि ने अपना रोना जिसके कारण से रोया है, क्या उसका…
इक्कीसवीं सदी के अहिंसक बाघ और बकरी की कहानी — सुरेश जैन (आई. ए. एस) टाइम्स ऑफ इंडिया नागपुर से यह समाचार प्रकाशित हुआ कि बोर वन्य अभयारण्य में पूर्ण विकसित नर बाघ को भोजन के लिये उसके बाड़े में एक जीवित बकरी छोड़ी गई। अभयारण्य के अधिकारियों को यह विश्वास था कि बाघ बकरी…
एक प्रेरक प्रसंग एक बार भगवान महावीर बालक अवस्था में कुण्डलपुर के उद्यान में अपने मित्रों के साथ एवं इन्द्र बालकों के साथ बालक्रीडा कर रहे थे । वहाँ एक संगम नामक देव ने आकर भयंकर सर्प का रूप धारण कर हलचल मचा दी । सर्प को देखकर सभी बालक डर के मारे इधर-उधर भागने…
घोड़ों कठे बांधू एक सेठ जी सुबह अपनी चौकी पर बैठे दातून कर रहे थे। इधर से घोड़ी पर बैठे ठाकुर साहब आए। जान न पहचान पर सेठजी ने ‘जयश्री हुक्म खम्मा घणी’ का अभिवादन कर दिया। ठाकुर घोड़ी से नीचे उतर कर पास आए और मधुर स्वर में कहा—सेठां ! ई घोड़ी ने कठे…
जीव दया परम धर्म है शुभा-माताजी! अब की महावीर जयन्ती के समय एक विद्वान् के उपदेश में मैंने सुना है कि दया, दान, पूजा, भक्ति करते-करते, करते-करते अनन्तकाल निकल गया किन्तु इस जीव का कल्याण नहीं हुआ और न ही होने का, क्योंकि ये दया, दान आदि कार्य धर्म नहीं है। उपदेश के बाद बाहर…