महामृत्युंजय स्तोत्र तीन लोक का हर प्राणी जिनके चरणों में झुकता है । तीन लोक का अग्रभाग जिनकी पावनता कहता है।। जन्म मृत्यु से रहित नाथ वे मृत्युञ्जयि कहलाते हैं। मृत्युञ्जयि प्रभु के वन्दन से जन्म मृत्यु नश जाते हैं।।१।। जिसने जन्म लिया है जग में मृत्यू उसकी निश्चित है। इसी जन्ममृत्यू के…
वैराग्य अष्टक शंभु छंद भावों की महिमा न्यारी है, जिनसे चेतन का नाता है। जड़ चेतन ही मिलकर बनते, हम सबके पिता व माता हैं।। संसार में ही रहते ये सब, नहिं मोक्ष का इनसे नाता है। वैराग्य भाव आ जाने पर, शिव से नाता जुड़ जाता है।।१।। परिणामों का ही खेल जगत में,…
श्री वीरसागर स्तोत्रं गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी बसंततिलका छंद सिद्धिप्रदं सकलतापहरं प्रसिद्धं, रत्नत्रयं परमसौख्यनिधिं दधान:। निष्विंकंचनोऽपि विबुधै: खलु कथ्यमान:, श्री वीरसागर गुरुर्हृदि तिष्ठतान्मे।।१।। सिद्धांतसारमवगम्य हितोपदेशी, गंभीर धीर मितवाक्प्रभृतेर्गुणाब्धि:। आचार शास्त्रमवगाह्य पटु: क्रियासु, श्री वीरसागर गुरुर्हृदि तिष्ठतान्मे।।२।। आत्मस्वभाव निरत: शिवसौख्यलिप्सु, मोक्षैक साधनविधौ कुशलो महात्मा। आजन्मकामविजयी मुनिनायकस्त्वं, श्री वीरसागर गुरुर्हृदि तिष्ठतान्मे।।३।। अध्यात्म शास्त्रनिपुणो निजतत्त्ववेदी, साम्यामृतस्वरसनिर्झरणी निमग्न:।…
श्री पंचपरमेष्ठी स्तोत्र मंगल स्तोत्र दोहा सौ इंद्रों से वंद्य नित, पंचपरम गुरुदेव। तिनके पद अरविंद की, करूँ सदा मैं सेव।।1।। त्रिाभुवन में त्रायकाल में, जन जन के हितकार। नमूं नमं मै भक्तिवश, होवें मम सुखकार।।2।। शंभु छंद अर्हन् के छ्यालिस गुण सि, के आठ सूरि के छत्तिस हैं। श्री उपाध्याय के पंचवीस, गुण…
स्वयंभू स्तोत्र भाषा चौपाई राजविषै जुगलनि सुख कियो, राजत्याग भवि शिवपद लियो। स्वयंबोध स्वयंभू भगवान, बंदौ आदिनाथ गुणखान।।१।। इंद्र क्षीरसागर जल लाय, मेरु न्हवाये गाय बजाय। मदनविनाशकसुखकरतार, बंदौअजित अजित-पदकार।।२।। शुक्लध्यानकरि करमविनाशि, घाति अघाति सकलदु:खराशि। लह्यो मुकतिपद सुख अविकार, बंदौं संभव भव दु:ख टार।।३।। माता पश्चिम रयनमंझार, सुपने देखे सोलह सार। भूप पूछि फल सुनि हरषाय,…