श्री रयणसार सरस काव्य पद्यावली भगवान महावीर के पश्चात् उनके प्रथम गणधर गौतम स्वामी ने दिव्यध्वनि को ग्रहण कर उसे ग्रंथरूप में निबद्ध किया। उसी श्रुत परम्परा को अनेक आचार्यों ने आगे बढ़ाया। उनमें आचार्य कुन्दकुन्द स्वामी का नाम ग्रंथ रचना में सर्वाधिक प्रचलित है। वे श्रमणसंस्कृति के उन्नायक कहे गये हैं। उनके अनेक नाम…
कहकोसु में वर्णित सामाजिक चिंतन डॉ. दर्शना जैन पालम गांव, नई दिल्ल- ११००७५ भूमिका कहकोसु एक जैन कथाग्रंथ है तथा भगवती आराधना पर आधारित है, इसमें विभिन्न कथाओं का वर्णन किया गया है। कहकोसु नामक ग्रंथ के रचियता मुनि श्रीचन्द्र हैं। कवि श्रीचन्द्र ने अपना यह कथा ग्रंथ मूलराज नरेश के राज्यकाल में अणहिल्लपुर पाटन…
आत्मानुशासन में आत्मस्वरूपी मीमांसा प्रशनोत्तरी आत्मन् (आत्मा) शब्द आड्. उपसर्ग पूर्वक अत् धातु से मनिन् या अत् धातु से मनिण् प्रत्यय करने पर निष्पन्न होता है, जिसके प्रमुखया आत्मा, जीव, स्व एवं परमात्मा आदि अनेक अर्थ हैं। ये सभी एकार्थक भी हैं और क्वचित् भिन्नार्थक भी। द्रव्यसंग्रह की टीका में कहा गया है कि ‘अत’…
आसक्ति भौतिक वस्तुओं से नहीं परमेश्वर से हो वर्तमान समय का मनुष्य भौतिकवाद की चकाचौंध में अत्यधिक लिप्त हो गया है। इस कारण उसे मानवता के मूल्यों का विस्मरण हो गया है। भगवान को स्मरण का प्रश्न ही नहीं। आत्मा और परमात्मा की चर्चा करना ही नहीं चाहता। इन्द्रियों की तृप्ति ही उसके जीवन का…