02. भगवान अजितनाथ (मुख्य)
श्री अजितनाथ भगवान वर्तमान चौबीसी के द्वितीय तीर्थंकर हैं | भगवान ने गर्भ-जन्म-तप और केवलज्ञान अयोध्या एवं मोक्ष सम्मेदशिखर से प्राप्त किया |
श्री अजितनाथ भगवान वर्तमान चौबीसी के द्वितीय तीर्थंकर हैं | भगवान ने गर्भ-जन्म-तप और केवलज्ञान अयोध्या एवं मोक्ष सम्मेदशिखर से प्राप्त किया |
आदिनाथ भगवान के पूर्व भव हे नाथ! आप ‘महाबल’-अतुल्यबल के धारक हैं अथवा इस भव से पूर्व दशवें भव में महाबल विद्याधर थे इसलिए आपको नमस्कार हो। आप ‘ललितांग’ हैं-सुन्दर शरीर को धारण करने वाले हैं अथवा नवमें भव पूर्व ऐशान स्वर्ग में ललितांग देव थे, इसलिए आपको नमस्कार हो। आप धर्मरूपी तीर्थ को प्रवर्ताने…
चौबीस तीर्थंकरों के पूर्व भव के नाम आदि भगवान ऋषभदेव पूर्वभव में चक्रवर्ती तथा चौदह पूर्वों के धारक थे और शेष तीर्थंकर महामण्डलेश्वर और ग्यारह अंग के वेत्ता थे। उक्त सभी तीर्थंकर पूर्वभव में अपने शरीरों की अपेक्षा सुवर्ण के समान कान्ति वाले थे।सभी तीर्थंकरों ने पूर्वभव में सिंहनिष्क्रीडित तप कर एक महीने के उपवास…
भगवान ऋषभदेव के जीवन में स्वप्नों का अदभुत संयोग भगवान ऋषभदेव जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर होने के साथ ही सम्पूर्ण सभ्यता के सूत्रधार भी थें २४ तीर्थंकरों में से ऋषभदेव ही एक ऐसे तीर्थंकर थे जिन्होंने अपने गृहस्थ जीवन में अपनी जनता को सभ्यता संस्कृति —धर्म , कला—कौशल, ज्ञान—विज्ञान, विद्या, वाणिज्य, राजनीति समाज नीति…
जैनधर्म के अष्टम तीर्थंकर श्री चन्द्रप्रभ भगवान जैनधर्म की २४ तीर्थंकर परम्परा के अष्टम तीर्थंकर श्री चन्द्रप्रभ भगवान् हम सबके आराध्य हैं। वे चन्द्रमा के समान कान्तिवाले होने के कारण ‘चन्द्रप्रभ’ नहीं हैं किन्तु चन्द्रमा की प्रभा को भी हरने वाले हैं क्योंकि चन्द्रकान्ति तो रात्रि में ही प्रकाशित होती है जबकि वे तो अपनी…
जैनधर्म के नवम तीर्थंकर श्री पुष्पदन्त भगवान डा. सुरेन्द्रकुमार जैन ‘भारती’ जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र की काकन्दी नगरी में इक्ष्वाकुवंशी काश्यपगोत्री सुग्रीव नाम का क्षत्रिय राजा राज्य करता था। सुन्दर कान्ति को धारण करने वाली जयरामा उसकी पटरानी थी। उस रानी ने देवों के द्वारा अतिशय श्रेष्ठ रत्नवृष्टि आदि सम्मान को पाकर फाल्गुन कृष्ण नवमी…
तीर्थंकर महावीर-ज्ञानवर्धक जानकारी ‘‘तिलोए सव्वजीवाणं हिद धम्मोवेदसिणं। वड्ढमाणं महावीरं वंदेहं सव्ववेदिणं।। ’’मैं तीन लोक के समस्त जीवों के हितकर, सर्वज्ञ, धर्मोपदेशदाता श्री वद्र्धमान महावीर स्वामी का वंदन करता हूँ। भगवान महावीर भरतक्षेत्र के आर्यखण्ड में वर्तमान चौबीसी के अंतर्गत अंतिम चौबीसवें तीर्थंकर हैं जिनका जन्म कुण्डलपुर में राजा सिद्धार्थ के सात मंजिल वाले नंद्यावर्त राज…
तीर्थंकर परम्परा तीर्थंकर तीर्थंकर भगवान के गर्भ में आने के छह महीने पहले ही इन्द्र की आज्ञा से कुबेर माता के आँगन में त्रिकाल में साढ़े तीन करोड़ रत्नों की वर्षा प्रतिदिन करता है। इस प्रकार छह महीने पहले से लेकर नौ महीने पर्यंत पन्द्रह महीने तक रत्न और सुवर्ण की वर्षा होती रहती है।…