वैराग्य भावना-वज्रनाभि चक्रवर्ती की दोहा बीज राख फल भोगवै, ज्यों किसान जग माहिं। त्यों चक्री नृप सुख करे, धर्म विसारै नाहिं।।१।। जोगीरासा वा नरेन्द्र छंद इहविधि राज करै नरनायक, भोगै पुण्य विशालो। सुखसागरमें रमत निरंतर, जात न जान्यो कालो।। एक दिवस शुभ कर्म-संजोगे, क्षेमंकर मुनि वंदे। देख शिरीगुरु के पदपंकज, लोचन अलि आनंदे।।२।। तीन प्रदक्षिण…
सुदर्शनमेरु वंदना ।। मंगलाचरण ।। णमो अरिहंताणं, णमो सिद्धाणं, णमो आइरियाणं। णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सव्व साहूणं। सुदर्शनमेरु वंदना तीर्थंकरस्नपननीरपवित्रजात:, तुङ्गोऽस्ति यस्त्रिभुवने निखिलाद्रितोऽपि। देवेन्द्रदानवनरेन्द्रखगेन्द्रवंद्य:, तं श्रीसुदर्शनगिरिं सततं नमामि।।१।। यो भद्रसालवननंदनसौमनस्यै:, भातीह पांडुकवनेन च शाश्वतोऽपि। चैत्यालयान् प्रतिवनं चतुरो विधत्ते, तं श्रीसुदर्शनगिरिं सततं नमामि।।२।। जन्माभिषेकविधये जिनबालकानाम्, वंद्या: सदा यतिवरैरपि पांडुकाद्या:। धत्ते विदिक्षु महनीयशिलाश्चतसृ:, तं श्रीसुदर्शनगिरिं सततं नमामि।।३।।…
मोक्ष कल्याणक वन्दना दोहा स्वात्म सुधारस सौख्यप्रद, परमाह्लाद करंत। नमूँ नमूँ नित भक्ति से, हो मुझ शांति अनंत।।१। गीता छंद जय जय जिनेश्वर तीर्थकर, प्रभु सिद्ध पद को पा लिया। जय जय जिनेश्वर सर्व हितकर, मोक्षमार्ग दिखा दिया।। संपूर्ण कर्म विनाश कर, कृतकृत्य त्रिभुवनपति बने। यममल्ल को भी चूर कर, प्रभु आप मृत्युंजयि बने।।२।। तत्क्षण…