मांस भक्षण से हानि अनंत जीवों के कलेवर का नाम मांस है। यह प्रत्यक्ष में महानिंद्य एवं अपवित्र है। मांस जीवों का वध करके तैयार किया जाता है, कच्चे-पक्के-सूखे सभी तरह के मांस में अनंतानंत जीव उत्पन्न हो जाते हैं जिसके खाने से बुद्धि नष्ट हो जाती है, दुर्गति अर्थात् नरकादि में जाना पड़ता है।…
मानवीय आहार शाकाहार —ताराचंद आहूजा गोधन— मासिक मुखपत्र, अगस्त २०१४ शाकाहार एक प्राकृतिक आहार है। इसके उत्पादन में न तो कहीं क्रूरता है, न बर्बरता, न शोषण और न ही किसी प्रकार की कोई हिंसा । यह किसी जीवधारी के प्राण लेकर उत्पन्न आहार नहीं है। इससे न तो वातावरण प्रदूषित होता है और न…
महापुराण प्रवचन महापुराण प्रवचन श्रीमते सकलज्ञान, साम्राज्य पदमीयुषे। धर्मचक्रभृते भत्र्रे, नम: संसारभीमुषे।। भव्यात्माओं! महापुराण ग्रंथ को यदि रत्नाकर भी कहें तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। इसमें भगवान ऋषभदेव के पूर्व भवों की बात चल रही हे। राजा वङ्काजंघ अपनी रानी के साथ ससुराल जा रहे थे रास्ते में एक नदी के किनारे पड़ाव डाला। अगले दिन…
महापुराण नाम की सार्थकता महापुराण नाम की सार्थकता तीर्थेशामपि चव्रेषां, हलिनामर्धचक्रिणाम्। त्रिषष्टिलक्षणं वक्ष्ये, पुराणं तद्द्विषामपि।।२०।। पुरातनं पुराणं स्यात्, तन्महन्महदाश्रयात्। महद्भिरुपदिष्टत्वात्, महाश्रेयोऽनुशासनात्।।२१।। कविं पुराणमाश्रित्य, प्रसृतत्वात् पुराणता। महत्त्वं स्वमहिम्नैव, तस्येत्यन्यैर्निरुच्यते।।२२।। महापुरुषसंबंधि, महाभ्युदयशासनम्। महापुराणमाम्नात-मत एतन्महर्षिभि:।।२३।। ऋषिप्रणीतमार्षं स्यात्, सूक्तं सूनृतशासनात्। धर्मानुशासनाच्चेदं, धर्मशास्त्रमिति स्मृतम्।।२४।। इतिहास इतीष्टं तद्, इतिह हासीदिति श्रुते:। इतिवृत्तमथैतिह्य-माम्नायं चामनन्ति तत्।।२५।। पुराणमितिहासाख्यं, यत्प्रोवाच गणाधिप:। तत्किलाहमधीर्वक्ष्ये, केवलं भक्तिचोदित:।।२६।। तीर्थंकरों,…
”नंदिमित्र बलभद्र एवं श्रीदत्त नारायण” भगवान मल्लिनाथ के तीर्थ में नंदिमित्र नाम के सातवें बलभद्र एवं श्रीदत्त नाम के सातवें नारायण हुए। इनके तीसरे भव पूर्व का चरित्र लिखा जाता है- अयोध्या के राजा के दो पुत्र थे। ये दोनों पिता को प्रिय नहीं थे अत: राजा ने इन दोनों को छोड़कर अपने छोटे भाई…
पर्यावरण प्रदूषण और णमोकार महामंत्र णमोकार महामंत्र पर्यावरण में हो रहे प्रदूषण की स्थिति को प्रक्षालन करता है। मूल बात यह है कि णमोकार महामंत्र किसी व्यक्ति विशेष की पुण्य अर्चना का मंत्र नहीं है। यहां अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और साधु की वंदना की गई है। ‘अरिहंत’ वे हैं जिन्होंने अपने चार घातिया कर्मों…
नित्योत्सव व्रत (अमृतसिद्धिव्रत) (जैनेन्द्र व्रत कथा संग्रह मराठी पुस्तक के आधार से) चैत्र मास आदि बारह मास में से किसी भी महीने में जिस दिन ‘अमृतसिद्धि योग’ हो उस दिन यह व्रत करना है। ऐसे पाँच ‘अमृत’ सिद्धियोग के दिन पाँच व्रत करना है। इस व्रत में ‘अमृतसिद्धियोग’ के दिन उपवास करके जिनमंदिर में भगवान…
विश्व धर्म संसद में गूंजा वह स्वर,सारे भारत का था रवीन्द मालवा’ जबकि भारत में ब्रिटिश तथा विश्व राजनीति में ब्रिटेन का दबदबा चरमोत्कर्ष पर था, अमेरिका के प्रसिद्ध नगर शिकागो में, सितम्बर १८९३ में ‘विश्व धर्म संसद’ का आयोजन हुआ। यह वह युग था, जबकि यूरोप में एशियाई सभ्यता, संस्कृति और आध्यात्मिक विचार-धाराओं को…
परिक्रमा क्यों ? गन्धोदक —तिलक लगाने के बाद वेदी की तीन प्रदक्षिणा (परिक्रमा) लगानी चाहिए। जहाँ परिक्रमा नहीं हो वहाँ विकल्प नहीं करना चाहिए। ये तीन प्रदक्षिणा जन्म — जरा— मृत्यु के विनाश हेतु तथा मन—वचन—काय से भक्ति की प्रतीक रूप, बायें हाथ से दाएं हाथ की तरफ लगायी जाती है क्योंकि ‘‘आत्मन: प्रकृष्टं दक्षिणीकृत्य…