महापुराण प्रवचन-१ श्रीमते सकलज्ञान, साम्राज्य पदमीयुषे। धर्मचक्रभृते भत्र्रे, नम: संसारभीमुषे।। महापुराण ग्रंथ के इस मंगलाचरण में श्री जिनसेनाचार्य ने किसी का नाम लिए बिना गुणों की स्तुति की है। जो अंतरंग बहिरंग लक्ष्मी से सहित एवं सम्पूर्ण ज्ञान से सहित हैं, धर्मचक्र के धारक हैं, तीन लोक के अधिपति हैं और पंचपरिवर्तनरूप संसार का भय…
सम्यग्दर्शन ही धर्म का मूल है (दर्शनपाहुड़ के आधार से) जिस प्रकार से मकान का मूल आधार नींव है और वृृक्ष का मूल आधार पाताल तक गई हुई उसकी जड़ें हैं उसी प्रकार से धर्म का मूल आधार सम्यग्दर्शन है क्योंकि सम्यग्दर्शन के बिना धर्मरूपी मकान अथवा धर्मरूपी वृक्ष ठहर नहीं सकता है। जीवरक्षारूप आत्मा…
अड़िंदा का श्री पार्श्वनाथ मंदिर : अभिलेख एवं इतिहास सारांश यहाँ के मुख्य मंदिर परिसर में एवं बाहर कुछ महत्वपूर्ण अभिलेख विद्यमान है जिनके ऐतिहासिक महत्व की ओर अब तक किसी का ध्यान नहीं हो पाया है। राष्ट्रकूट से संबंधित अभिलेखों से संबद्ध क्षेत्र में उनका शासन होने एवं उनका जैन धर्मानुयायी होना ज्ञात होता…
‘भगवती आराधना’ के रचनाकार आचार्य शिवकोटि —श्री रमाकान्त जैन स्मरण शीतीभूतं जगद्यस्य वाचाराध्यचतुष्टयम्। मोक्षमार्ग स पायान्न: शिकोटिर्मुनीश्वर।।१।। जिनके वचनों से सम्यक्दर्शन, सम्यक्ज्ञान, सम्यक्चारित्र और सम्यक्तपरूप चतुष्टय की आराधना द्वारा मोक्षमार्ग की आराधना कर जगत के जीव शीतलता का अनुभव करते हैं (सुखी होते हैं) वे शिवकोटि मुनीश्वर हमारी रक्षा करें। तस्य (समन्तभद्र) एव शिष्यश्शिवकोटिसूरिस्तपोललतालम्बनदेहयष्टि:। संसार—वाराकर—पोतमेतत्तत्त्वार्थसूत्रं…
धार्मिक पहेलियाँ १०१. चार मास अरु दो व तीन में, व्रत पालन में नर प्रवीण वे । मुनिवर आठ बीस गुणधारी, गुण का नाम बताओ भारी।। उत्तर— केशलोंच नामक मूलगुण। १०२. लघु सम्मेदशिखर कहलाता, मध्यप्रदेश की शान बढ़ाता।तीर्थ कौन सा सबको भाता, सिद्ध जिनों को शीश नवाता।।उत्तर— श्री द्रोणागिरी जी सिद्धक्षेत्र। १०३. मिथिला नगरी में…
काव्य कथानक प्रथमाचार्य श्री शांतिसागर काव्य कथानक (१) जन्म, बाल विवाह एवं ब्रह्मचारी जीवन भव्यात्माओं! संसार के रंगमंच पर अनन्त प्राणी अपना-अपना जीवन व्यतीत करके चले जाते हैं और पुन: पुन: चारों गति में परिभ्रमण करते हुए चौरासी लाख योनियों में दु:ख भोगते रहते हैं। कभी कोई बिरले पुण्यात्मा जीव होते हैं जो मानव जीवन…
नक्शा ही बदल गया (काव्य पांच से सम्बन्धित कथा) सुभद्रावती नगरी में ही नहीं वरन् समस्त कोकण प्रदेश की गली-गली में यही चर्चा थी कि आखिर ‘देवल’ इतनी सम्पत्ति पा वैâसे गया।…कल तो फटा जीर्ण-शीर्ण कुरता पहिने हुए लकड़ी को आरे से चीर रहा था। नन्हें-नन्हे बच्चे पास खड़े रोटी के एक टुकड़े को चिल्ला…
श्री आकाशपंचमी व्रत आर्यखण्ड के सोरठ देश में तिलकपुर नाम का एक विशाल नगर था। वहाँ महीपाल नाम का राजा और विचक्षणा नामक रानी थी। उसी नगर में भद्रशाल नाम का व्यापारी रहता था उसकी नन्दा नाम की स्त्री से विशाला नाम की पुत्री उत्पन्न हुई।यद्यपि वह कन्या अत्यन्त रूपवान थी, तथापि इसके मुख पर…