पाँचों मेरुपर्वत कहाँ-कहाँ हैं ? अथ अग्रे वक्ष्यमाणानामर्थानां मन्दराश्रयत्वात्तानेव प्रथमं प्रतिपादयति— जंबूदीवे एक्को इसुकयपुव्ववरचावदीवदुगे। दो द्दो मन्दरसेला बहुमज्झगविजयबहुमज्झे।।५६३।। जम्बूद्वीपे एकः इषुकृतपूर्वापरचापद्वीपद्विके। द्वौ द्वौ मन्दरशैलौ बहुमध्यगविजयबहुमध्ये।।५६३।। जंबू। जम्बूद्वीपे एको मन्दरः इष्वाकारपर्वतकृतपूर्वापरचापद्वीपद्विके द्वौ द्वौ मन्दरशैलौ। तत्रापि ते मन्दराः क्व तिष्ठन्ति ? भरतादिदेशानामतिशयेन मध्यस्थितो विजयः देश इत्यर्थः। तस्यात्यन्तमध्यप्रदेशे तिष्ठन्ति।।५६३।। पाँचों मेरुपर्वत कहाँ-कहाँ हैं ? अग आगे कहा जाने…
आधुनिक जीव विज्ञान से परे जैन जीव विज्ञान —प्रभात कुमार जैन ( शांति निकेतन, कविनगर, गाजियाबाद (उ. प्र.) २१०००२ कर्मों की ८ प्रकृतियों एवं उनके बंध की प्रक्रिया को बताने के साथ ही एक समय में प्रबद्ध कर्मवर्गणाओं के ८ कर्मों में विभाजन की रूपरेखा बताई गई है। आत्मा के साथ जुड़े इन कर्मों के…
जैन धर्म में स्वस्तिक (साथिया) सारांश प्रस्तुत आलेख में भारतीय परम्परा में सर्वमान्य मांगलिक प्रतीक स्वस्तिक के महत्व तथा उसके अर्थ को स्पष्ट किया गया हैं । स्वस्तिक एक मांगलिक प्रतीक हैं। जिसके आकार में मंगल का भाव समाहित हो गया हैं। जिसके विन्यास की रेखायें और दिशायें मंगल तत्व का संकेत करती हैं। रूप,…
अमरूद—घर का वैद्य अमरूद को जामफल के नाम से जाना जाता है ।पोषक तत्वों में यह सेब से अधिक पौष्टिक है । इसका उपयोग कई रूपों में किया जाता है । इसमें अमरूद , जैम, जैली, मकरद आदि प्रमुख हैं। अमरूद पित्तशामक और रूचिकर होता है। यह मूच्र्छा और प्यास को दूर करता है। अमरूद…
घुटनों का दर्द डॉ. अनवर सिदीकी घुटना शरीर का वह भाग होता है जो शरीर का भार सहता है। शरीर को सपोर्ट करता है और इसे चलायमान बनाता है। लेकिन कभी—कभी शरीर के घुटने इस प्रकार जवाब दे देते हैं। कि रोजमर्रा का कोई भी काम करना बड़ी आफत बन जाता है। उठते—बैठते, चलते—फिरते मुंह…
जैन रीति, शिल्पकला एवं प्राचीन ग्रंथों के जैविक संरक्षण सारांश प्रस्तुत शोध लेख में वायुमण्डल में सूक्ष्म जीवों, गुफाओं, शिल्पकला, भित्ति चित्रकला एवं प्राचीन ग्रंथों के जैविक संरक्षणों का वर्णन किया गया है। जैविक सुरक्षा से हमारी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का तीव्र गति से विनाश हुआ है एवं काफी विरासत नष्ट होने के कारण खड़ा…
हमारे समाज में कन्या के विवाह के समय दहेज़ देने की परम्पराचली आ रही है |२०वीं शताब्दी में एक ऐसे दहेज़ की कहानी अविस्मरणीय रहेगी ,जिसने गणिनी ज्ञानमती माताजी जैसे महान रत्न समाज को प्रदान किया ,वह दहेज़ था -पूज्य माताजी की गृहस्थावस्था की माता मोहिनी देवी को ,उनके पिता के द्वारा दहेज़ में दिया गया पद्मनंदिपंचविंशतिका ग्रन्थ |