अतिशय क्षेत्र कुण्डल (कलिकुण्ड पार्श्वनाथ) —ब्र. कु. सारिका जैन (संघस्थ) मार्ग और अवस्थिति- श्री कलिकुण्ड पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र कुण्डल महाराष्ट्र प्रान्त के सांगली जिले में तालुका तासगाँव में अवस्थित है। यह पूना-सतारा-मिरज रेलमार्ग पर किर्लोस्करबाड़ी से ३.५ किमी. है। यह क्षेत्र सड़क मार्ग से सांगली से ५१ किमी., कराड़ से २९ किमी. तथा…
हमारे देश का नाम भारत अथवा इंडिया परम् पूज्य मुनिश्री सुधासागर जी महाराज ने दिनांक ३ फरवरी ९७ को दिगम्बर जैन मंदिर, मालवीय नगर, जयपुर में प्रवचन के दौरान एक महत्वपूर्ण विषय की ओर ध्यान आकर्षित किया। भारतवर्ष, जो कि मूलत: आर्यखण्ड है, का नाम हजारों वर्षों से ‘भारत’ चला आ रहा है । अंग्रेजों…
रोहिणी व्रत विधि एवं कथा जम्बूद्वीप के इसी भरत क्षेत्र में कुरुजांगल देश है, इसमें हस्तिनापुर नाम का सुन्दर नगर है। किसी समय यहाँ वीतशोक राजा राज्य करते थे। इनकी रानी का नाम विद्युत्प्रभा था। इन दोनों के एक अशोक नाम का पुत्र था। इसी समय अंग देश की चम्पा नगरी में मघवा नाम के…
सिंहपुरी तीर्थ ८. तीर्थंकर श्रेयांसनाथ जन्मभूमि द्वारा ६ किमी. दूर उत्तर में अवस्थित है। भगवान श्रेयांसनाथ तीर्थंकर के जन्म एवं चार कल्याणकों के कारण यह प्रागैतिहासिक काल से जैन तीर्थ रहा है। यहाँ उनके गर्भ, जन्म, दीक्षा और केवलज्ञान ये चार कल्याणक हुए थे। विद्वानों का मत है कि तीर्थंकर श्रेयाँसनाथ जी का जन्म स्थान…
ध्यान की आवश्यकता आर्तं रौद्रं च दुध्र्यानं, निर्मूल्य त्वत्प्रसादत:। धर्मध्यानं प्रपद्याहं, लप्स्ये नि:श्रेयसं क्रमात्।।११।। हे भगवान! आर्त-रौद्र इन दो दुध्र्यानों को आपके प्रसाद से निर्मूल करके मैं धर्मध्यान को प्राप्त करके क्रम से मोक्ष को प्राप्त करूँगा। ड एकाग्रचिन्तानिरोध होना अर्थात् किसी एक विषय पर मन का स्थिर हो जाना ध्यान है। यह ध्यान उत्तम…
तीर्थंकर महावीर की निर्वाण स्थली पावापुरी (पावापुर) नरेशकुमार पाठक संग्रहाध्यक्ष—जिला संग्रहालय, देवास (म. प्र.) सारांश जैन धर्म के चौबीस तीर्थंकरों की परम्परा में जिन अन्तिम तीर्थंकर महावीर स्वामी के प्रभाव से जैन धर्म पुष्पित, पल्लवित व प्रसारित हुआ, उनका महानिर्वाण (मोक्ष) वर्तमान बिहार राज्य के पावापुरी (पावापुर) नामक स्थान पर हुआ। महास्वामी महावीर के महा…
जैन पाण्डुलिपियाँ अर्हत वचन मालवा में प्राचीन शास्त्रों की खोज मालवा प्रदेश के जैन शास्त्र भंडारों में प्राचीन हस्तलिखित पाण्डुलिपियों की खोज के उद्देश्य से मैंने मार्च १९९२ में एक शोधयात्रा सम्पन्न की। यह यात्रा सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय के प्राकृत एवं जैनागम विभाग में प्रोफैसर गोगुलचन्द्र जैन के निर्देशन में चल रहीं विभिन्न अनुसंधान योजनाओं…