पानी का दुरुपयोग बना सकता है कंगाल हमारे जीवन में पानी का बहुत महत्व है, क्योंकि पानी के बिना जीवन संभव ही नहीं है। धर्म ग्रंथों में भी पानी से संबंधित कई महत्वपूर्ण बातें बताई गई हैं। उसके अनुसार जिस घर में पानी का दुरुपयोग होता है वहां सदैव धन का अभाव रहता है और…
मंत्र का वैज्ञानिक विश्लेषण प्राचीन भारतीय तत्वज्ञ, मनीषी, ऋषि, मुनियों ने अपने गंभीर अन्वेषणों परीक्षणों— निरीक्षण एवं विश्लेषणों से प्रत्येक तत्व मेें निहित अनेकानेक चमत्कार पूर्ण, सत्य—तथ्य शक्तियों का परिज्ञान, उपलब्धि तथा उपयोग को हस्तगत किया था। अति प्राचीन काल में दृढ़ संकल्प शक्ति, कठोर संयम, परिशुद्ध आहार—विहार, आचार—विचार—उचार तथा अनुकूल द्रव्य—क्षेत्र—काल रूपी परिस्थितियों के…
भवनवासी वायुकुमारदेव (गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती माताजी से क्षुल्लक मोतीसागर जी की एक वार्ता) क्षुल्लक मोतीसागर – वंदामि माताजी! श्री ज्ञानमती माताजी – बोधिलाभोऽस्तु! क्षुल्लक मोतीसागर – भवनवासी देवों के दस भेदों में से ५ भेदों का विश्लेषण तो आपसे मैं प्राप्त कर चुका हूँ। अब १०वाँ भेद जो ‘‘वायुकुमार’’ नाम का है उसके बारे…
नंदिमित्र बलभद्र एवं श्रीदत्त नारायण भगवान मल्लिनाथ के तीर्थ में नंदिमित्र नाम के सातवें बलभद्र एवं श्रीदत्त नाम के सातवें नारायण हुए। इनके तीसरे भव पूर्व का चरित्र लिखा जाता है-अयोध्या के राजा के दो पुत्र थे। ये दोनों पिता को प्रिय नहीं थे अत: राजा ने इन दोनों को छोड़कर अपने छोटे भाई को…
विजय का सर्वोत्तम साधन—क्षमा श्रमण संस्कृति के अमर गायक आचार्य कुन्दकुन्द का उपदेश है— क्रोधोत्पत्ति के साक्षात् बाह्य कारण मिलने पर भी जो थोड़ा भी क्रोध नहीं करता उसका वह आचरण क्षमायुक्त है। यही है वीर पुरूष का आभूषण । मानव कभी इतना सुंदर नहीं लगता जितना कि उस समय जब वह क्षमा के लिये…
गृहस्थ धर्म जो स्त्री, पुत्र, धन आदि के मोह से ग्रसित हैं वे सागार या गृहस्थ कहलाते है। वे यदि सर्वत्याग रूप मुनिमार्ग में प्रीति रखने वाले हैं और कारणवश उस पद को ग्रहण नहीं कर पाते हैं तभी वे श्रावक धर्म को ग्रहण करने के अधिकारी होते हैं। अन्यथा यदि मुनि धर्म मेंं उनकी…
द्रव्य – गुण – पर्यायविषयक विवेचन पू० माता जी ने द्रव्य के लक्षण सत् (उत्पाद-व्यय-ध्रौव्यात्मक) एवं उनके प्रकट स्वरूप द्रव्य – गुण – पर्याय का विवेचन अति सुन्दर एवं स्पश्ट रूप में करके नियमसार के हार्द को खोल दिया है। विशय विस्तार के भय से यहाँ हम मात्र उनकी कतिपय पक्तियाँ प्रस्तुत करेंगे जिससे उनकी…
वेदमार्गणा (दशम अधिकार) वेद का स्वरूप पुरिसिच्छिसंढवेदोदयेण पुरिसिच्छिसंढओ भावे। णामोदयेण दव्वे, पाएण समा कहिं विसमा।।८३।। पुरुषस्त्रीषण्ढवेदोदयेन पुरुषस्त्रीषण्ढा: भावे। नामोदयेन द्रव्ये प्रायेण समा: क्वचिद् विषमा:।।८३।। अर्थ—पुरुष, स्त्री और नपुंसक वेदकर्म के उदय से भावपुरुष, भावस्त्री, भावनपुंसक होता है और नामकर्म के उदय से द्रव्यपुरुष, द्रव्यस्त्री, द्रव्यनपुंसक होता है। सो यह भाव वेद और द्रव्य वेद प्राय:…