सल्लेखना आत्म घात नहीं अपितु वीर मरण है प्रस्तुति- आर्यिका चंदनामती माताजी अनादि काल से इस चतुर्गत्यात्मक भव समुद्र में परिभ्रमण करता हुआ यह जीव जन्म मरण और जरारूप संतापत्रय से संतापित होता हुआ अनंत असह्य दु:खों का अनुभव करके मृगमरीचिका जलवत् प्रतिभासमान पंचेन्द्रिय के विषयों में अनुरक्त होता हुआ तृष्णातुर मृग के समान इतस्तत:…
ग्वालियर के पुरातत्व संग्रहालय में जैन धर्म ग्वालियर, सेण्ट्रल रेलवे की मुख्य लाइन पर आगरा—झाँसी के मध्य में आगरा से ११८ कि. मी. दूर एक प्रसिद्ध एवं ऐतिहासिक शहर है। यह एक समय ब्रिटिश शासनकाल में भारत की रियासतों में चौथे स्थान पर था और उसके नरेश िंसधिया वंश के थे। प्राचीनकाल में ग्वालियर का…
कलिंग चक्रवर्ती खारवेल शुङ्ग राजवंश ने ११२ वर्ष तक राज्य किया । इसके बाद इसका अन्त हो गया । इसके बाद कलिक् में. एक शक्तिशाली राज्य का उदय हुआ, जिसके प्रधान नायक खारवेल माने जाते हैं । प्राचीन भारत के इतिहास और सांस्कृतिक क्षेत्र में प्रख्यात चेदि राजवंश की प्रतिष्ठा कलिक् में महामेघवाहन वंश के…
श्रावक को अपने जीवन में मूलगुण को अवश्य धारण करना चाहिए,क्योंकि अष्ट मूलगुणों को धारण करके ही वास्तव में श्रावकसंज्ञा सार्थक होती है |
पांच उदम्बरफलों का एवं तीन मकार अर्थात् मंद्य, मांस,मधु का त्याग ये श्रावक के अष्ट मूलगुण कहलाते हैं |
सल्लेखना लेखक :—परम पूज्य १०८ आचार्यकल्प श्री श्रुतसागरजी महाराज ( समाधिस्थ ) सल्लेखना के विषय में मुख्यत: निम्नांकित पाँच बातों पर विचार किया जाता है—सल्लेखना का क्या स्वरूप है ? उसे कब और क्यों धारण करना चाहिये तथा सल्लेखना का कितना काल है? और इसके धारण करने से क्या लाभ है ? १. सल्लेखना का…
दर्शनविशुद्धि भावना दर्शनविशुद्धि भावना जिनोपदिष्टे निर्ग्रन्थे मोक्षवर्त्मनि रुचि: नि:शंकितत्वाद्यष्टांगा दर्शनविशुद्धि:।।१।। जिनेन्द्र देव के द्वारा उपदिष्ट निर्ग्रंथ दिगम्बर मोक्षमार्ग में रुचि होना और नि:शंकित आदि आठ अंगों का पालन करना दर्शनविशुद्धि है। इहलोक, परलोक, व्याधि, मरण, अगुप्ति, अत्राण और आकस्मिक इन सात प्रकार के भयों से रहित होना नि:शंकित है अथवा अर्हंत देव के द्वारा कथित…