दिगम्बर जैन मुनि-आर्यिकाओं की वंदना/विनय के संदर्भ में कतिपय आगम प्रमाण -प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका चन्दनामती माताजी भारतदेश की पवित्र वसुन्धरा पर जैन शासन के अनुसार मुनि-आर्यिका, क्षुल्लक-क्षुल्लिका रूप चतुर्विध संघ परम्परा की व्यवस्था अनादिकाल से चली आ रही है। उनमें जहाँ दिगम्बर मुनियों को धर्मेश्वर के अंश कहकर सम्बोधित किया गया है, वहीं आर्यिका माताओं को…
२. कन्या सुरसुन्दरी का शैवगुरु के पास विद्याध्ययन राजपुत्री सुरसुंदरी ने शैवगुरु के पास वेद, पुराण, ज्योतिष, वैद्यक, छन्द, काव्य, अलंकार और संगीत आदि अनेक विद्याओं को पढ़ लिया। तब शैवगुरु ने उस विदुषी पुत्री को साथ लेकर राजा के पास आया, उसने राजा को आशीर्वाद देकर उनकी कन्या उन्हें सौंप दी। राजा ने भी…
वक्ता के लक्षण ऊपर कही हुई कथा को कहने वाला आचार्य वही पुरुष हो सकता है, जो सदाचारी हो, स्थिरबुद्धि हो, इन्द्रियों को वश में करने वाला हो, जिनकी सब इन्द्रियाँ समर्थ हों, जिसके अंगोपांग सुन्दर हों, जिसके वचन स्पष्ट परिमार्जित और सबको प्रिय लगने वाले हों, जिसका आशय जिनेन्द्रमतरूपी समुद्र के जल से धुला…
३. ध्यान ‘‘उत्तम संहनन वाले का एक विषय में चित्तवृत्ति का रोकना ध्यान है जो अंतर्मुहूर्त काल तक होता है।’’ आदि के वङ्कावृषभ नाराच, वङ्कानाराच और नाराच ये तीनों संहनन उत्तम माने हैं। ये तीनों ही ध्यान के साधन हैं, किन्तु मोक्ष का साधन तो प्रथम संहनन ही है। नाना पदार्थों का अवलम्बन लेने से…
जिसने अपने को वश में कर लिया, उसकी सफलता को देवता भी हार में नहीं बदल सकते…….. धर्म का अर्थ है अपने ज्ञायक स्वभाव में रागद्वेष रहित आत्मा की स्थिति की अनुभूति करना। यह संसार हार जीत का खेल है, इसे नाटक समझ कर खेलो। भक्त जब वीतरागी परमात्मा की श्रद्धाभक्ति में डूब जाता है…
पुरुष की ७२ कलाओं के नाम पुरुष की बहत्तर कलाएँ कलानिधि नाम की व्याख्या करते हुए श्रुतसागर सूरि ने पुरुष की बहत्तर कलाओं के नाम इस प्रकार बतलाये हैं :— १. गीतकला, २. वाद्यकला, ३. बुद्धिकला ४. शौचकला, ५. नृत्यकला, ६. वाच्यकला, ७. विचारकला, ८. मंत्रकला, ९. वास्तुकला, १०. विनोदकला, ११. नेपथ्यकला, १२. विलासकला, १३….
मौर्य सम्राट् चन्द्रगुप्त चन्द्रगुप्त का कुल— चन्द्रगुप्त के पूर्वजों के विषय में मतभेद है। हिन्दू ग्रंथों में चन्द्रगुप्त को मगध के नन्दवंश से सम्बन्धित बतलाया गया है। मुद्राराक्षस में उन्हें न केवल मौर्यपुत्र वरन् नन्दान्वय भी लिखा है।१ क्षेमेन्द्र तथा सोमदेच ने उसे पूर्वनन्द सुत कहा है। मुद्राराक्षस के आलोचक ढुण्ढिराज ने लिखा है कि…