15. लेश्यामार्गणा
लेश्यामार्गणा पन्द्रहवाँ अधिकार का स्वरूप लिपइ अप्पीकीरइ, एदीए णियअपुण्णपुण्णं च। जीवो त्ति होदि लेस्सा लेस्सागुणजाणयक्खादा।।१३२।। लिंपत्यात्मीकरोति एतया निजापुण्यपुण्यं च। जीव इति भवति लेश्या लेश्यागुणज्ञायकाख्याता।।१३२।। अर्थ —लेश्या के गुण को—स्वरूप को जानने वाले गणधरादि देवों ने लेश्या का स्वरूप ऐसा कहा है कि जिसके द्वारा जीव अपने को पुण्य और पाप से लिप्त करे—पुण्य और पाप…