चारणमुनि!
[[चारणमुनि]] चारणऋद्धिधारी मुनि जो भूमि पर नहीं चलते है,आकाश में विहरण करते है”
[[चारणमुनि]] चारणऋद्धिधारी मुनि जो भूमि पर नहीं चलते है,आकाश में विहरण करते है”
सात सौ जैन मुनियों की रक्षा का प्रतीक—रक्षा बंधन पर्व (वात्सल्य पूर्णिमा) भारतीय पर्वों की शृंखला में पावन पर्व रक्षा बंधन का महत्त्वपूर्ण स्थान है। यह पर्व भारतीय जन जीवन में भ्रातृत्व, प्रेम एवं सौहार्दपूर्ण स्नेह की पवित्र निर्मलधारा को प्रवाहित करता है। भगिनी द्वारा भ्राता के हाथ में बांधा गया पावन रक्षा सूत्र अबला…
महावीर निर्वाण महोत्सव-दीपावली महावीर ने पावापुर से मोक्षलक्ष्मी पाई थी। इंद्र—सुरों ने र्हिषत होकर, दीपावली मनाई थी।। पावापुर उद्यान मनोहर, योग निरोध किया सुखकार। सिद्धशिला पर हुए विराजित, गूंज उठी प्रभु की जयकार।। इंद्रादिक सुर र्हिषत आये, मन में धारे मोद अपार। महामोक्ष कल्याण बनाया, अखिल विश्व में मंगलकार।। तन कपूरवत उड़ा शेष नख, केश…
सप्तव्यसन सात नरक के द्वार हैं । (पद्मनन्दिपञ्चविंशतिका ग्रंथ के आधार से विशेषार्थ सहित) सात व्यसनों के नाम -अनुष्टुप्-द्यूतमांससुरावेश्याखेटचौर्यपराङ्गना: ।महापापानि सप्तेति व्यसनानि त्यजेद्बुध:।।१६।। जुआ खेलना, मांस खाना, मदिरा पीना, वेश्यासेवन करना, शिकार खेलना, चोरी करना और परस्त्री सेवन करना ये सातों व्यसन महापाप को उत्पन्न करने वाले हैं अतएव बुद्धिमान पुरुष इनका त्याग अवश्य कर…
दशलक्षण धर्म का कथन उत्तमक्षमाधर्म का स्वरूप मालिनी जडजनकृतबाधाक्रोध- हासप्रियादावपि सति न विकारं यन्मनो याति साधो:। अमलविपुलचित्तौरुत्तमा सा क्षमादौ शिवपथपथिकानां सत्सहायत्वमेति।।८२।। अर्थ— मूर्ख जनों कर किये हुवे बंधन हास्य आदि के होने पर तथा कठोर वचनों के बोलने पर जो साधु अपने निर्मल धीर वीर चित्त से विकृत नहीं होता उसी का नाम उत्तम…
रक्षाबंधन पूजा स्थापना तर्ज – धीरे-धीरे बोल कोई सुन ना ले…….. सात शतक मुनिवरों की अर्चना करूँ, अर्चना करूँ इनकी वंदना करूँ। ये अकम्पनाचार्यादि थे, उपसर्गजयी मुनिराज थे।।सात शतक.।।टेक.।। हस्तिनागपुर नगरी के उद्यान में, एक बार इन मुनि के चातुर्मास थे। अग्नी का उपसर्ग किया बलि आदि ने, दूर किया उपसर्ग विष्णु मुनिराज ने।। वे…
स्वस्तिश्री कर्मयोगी पीठाधीश रवीन्द्रकीर्ति स्वामी जी का अंतरंग एवं बहिरंग परिचय समाज में सामान्य श्रावकों की संख्या एवं भूमिका अवश्य ही समाज के विकास के लिए लाभदायक सिद्ध होती है। लेकिन कुछ अद्भुत प्रतिभासम्पन्न विरले महामनाओं की खोज की जावे, तो समाज में ऐसे पुरुष जिन्हें महापुरुष की संज्ञा दी जा सकती है, वे बहुत…
ज्ञानमार्गणा (बारहवाँ अधिकार) ज्ञान का स्वरूप जाणइ तिकालविसए, दव्वगुणे पज्जए य बहुभेदे। पच्चक्खं च परोक्खं, अणेण णाणं ति णं बेंति।।९५।। जानाति त्रिकालविषयान् द्रव्यगुणान् पर्यायांश्च बहुभेदान्। प्रत्यक्ष च परोक्षमनेन ज्ञानमिति इदं ब्रुवन्ति।।९५।। अर्थ—जिसके द्वारा जीव त्रिकालविषयक भूत, भविष्यत्, वर्तमान काल सम्बंधी समस्त द्रव्य और उनके गुण तथा उनकी अनेक प्रकार की पर्यायों को जाने…
मोक्षसप्तमी पर्व – नृत्य नाटिका (तर्ज-आए महावीर भगवान……….) प्रश्न-कैसा उत्सव आया आज, क्यों धूम मची मंदिर में। बतला दो मेरे भ्रात, क्यों धूम मची मंदिर में।।टेक.।। उत्तर-सुन ले मेरी बहना आज, क्यों धूम मची मंदिर में। है प्रभु पार्श्वनाथ निर्वाण, का उत्सव इस मंदिर में।।टेक.।। प्रश्न-निर्वाण कहाँ से पाया, कहाँ प्रभु ने ध्यान लगाया। क्या…
विश्व की शान- भगवान् ऋषभदेव और वर्द्धमान —डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन् (भारत के राष्ट्रपति) भारतीय साहित्य में अनेक प्रमाण उपलब्ध हैं जो बताते हैं कि बहुत पहले से ही, प्रथम शताब्दी (ईसा पूर्व) से ही ऐसे लोग थे जो ऋषभदेव प्रथम तीर्थंकर की उपासना करते थे। इसमें किसी प्रकार का संशय नहीं कि वर्द्धमान…