२. गुर्वावली (मूलसंघ के अन्तर्गत नंदिसंघ के आचार्यों की नामावली) ‘‘समस्त राजाओं से जिनके पादकमल पूजित हैं, जो मुनिवर भद्रबाहु के पदकमल को विकसित करने में सूर्य हैं, ऐसे ‘श्री गुप्तिगुप्त’ इस नाम से प्रसिद्ध श्रीमान महामुनि आप लोगों के निर्मल संघ की वृद्धि को करें। श्री मूलसंघ में नंदिसंघ हुआ है उसमें अतिरमणीय बलात्कारगण…
भगवान शांतिनाथ अपराजित महामंत्रणमो अरिहंताणं, णमो सिद्धाणं, णमो आइरियाणं।णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सव्व साहूणं।। अरिहंतों को नमस्कार हो, सिद्धों को नमस्कार हो, आचार्यों को नमस्कार हो, उपाध्यायों को नमस्कार हो और लोक में सर्व साधुओं को नमस्कार हो। इसे पंचनमस्कार मंत्र, महामंत्र और अपराजित मंत्र भी कहते हैं। एसो पंचणमोयारो, सव्वपावप्पणासणो।मंगलाणं च सव्वेसिं, पढमं हवइ…
मंदिर एवं वेदी शुद्धि हेतु घटयात्रा और शुद्धि विधान विधि मंदिर, वेदी तथा कलशों की शुद्धि के लिए तीर्थजल की आवश्यकता होती है। अत: किसी जलाशय पर गाजे-बाजे के साथ जाकर जल लाना चाहिए। इस कार्य के लिए कम से कम ९ और अधिक से अधिक ८१ घटों का भरना बतलाया है। कहीं-कहीं १०८…
वारसणुपेक्खा (श्री कुन्द्कुंदाचार्यकृत) श्री कुंदकुंद आचार्य द्वारा रचित बारसणुपेक्खा नामके ग्रन्थ से यहाँ द्वादश अनुप्रेक्षाओं का वर्णन प्रस्तुत किया जा रहा है । मंगलाचरण और प्रतिज्ञावाक्य णमिऊण सव्वसिद्धे झाणुत्तमखविददीहसंसारे । दस दस दो दो व जिणे दस दो अणुपेहणं बोच्छे ।।१।। जिन्होंने उत्तम ध्यान के द्वारा दीर्घ संसार का नाश कर दिया है ऐसे समस्त…
श्री मांगीतुंगी जी दिगम्बर सिद्धक्षेत्र की प्राचीनता का प्रत्यक्ष दर्शन राम, हनु, सुग्रीव सुडील, गव गवाक्ष, नील—महानील। कोटि निन्यानवै मुक्ति पयान, तुंगीगिरि बंदौ धरि ध्यान।। यह वही अद्वितीय भूमि है जो प्राचीन काल से पुरातन स्मृतियों की याद दिला रही है । करोड़ों चंद्र, सूर्यों के प्रकाश से अधिक तेज केवल ज्ञानरूपी उत्कृष्ट ज्योति को…
विदेशों में जैनधर्म एवं समाज वरिष्ठ जैन समाजसेवी एवं श्रेष्ठि श्री त्रिलोकचंद कोठारी ने भारत एवं विदेशों में जैन धर्म के प्रचार से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्यों को प्रस्तुत आलेख में संकलित किया है। अमेरिका, फिनलैण्ड, सोवियत गणराज्य, चीन एवं मंगोलिया, तिब्बत, जापान, ईरान, तुर्किस्तान, इटली, एबीसिनिया, इथोपिया, अफगानिस्तान, नेपाल, पाकिस्तान आदि विभिन्न देशों में किसी…
४. सल्लेखना मनुष्य आदि पर्याय का नाश होना मरण है। इस मरण के पाँच भेद हैं-पंडितपंडितमरण, पंडितमरण, बालपंडितमरण, बालमरण और बालबालमरण। पंडितपंडितमरण – क्षीणकषाय केवली भगवान्, पंडितपंडितमरण से मरण करते हैं अर्थात् केवली भगवान अयोगी होकर इस मनुष्य पर्याय से छूटकर कर्मों से ही छूट जाते हैं पुन: भव धारण नहीं करते हैं। पंडितमरण –…