11. रत्नत्रय धर्म
रत्नत्रय धर्म सम्यग्दर्शन अन्तरंग और बहिरंग कारणों के मिलने पर आप्त (देव), शास्त्र और पदार्थों का तीन मूढ़ता रहित, आठ अंग सहित जो श्रद्धान होता है, उसे सम्यग्दर्शन कहते हैं। यह सम्यग्दर्शन प्रशम, संवेग आदि गुण वाला होता है। सर्वप्रथम यहां पर आप्त, आगम और पदार्थों का स्वरूप समझ लेना आवश्यक है। सच्चे आप्त –…