सरस्वती देवी के १०८ मंत्र!
सरस्वती देवी के १०८ मंत्र अर्हद्वक्त्राब्जसंभूतां, गणाधीशावतारितां । महर्षिधारितां स्तोष्ये, नाम्नामष्टशतेन गां ।। १. ॐ ह्रीं श्री आदिब्रह्ममुखाम्भोज प्रभवायै…
सरस्वती देवी के १०८ मंत्र अर्हद्वक्त्राब्जसंभूतां, गणाधीशावतारितां । महर्षिधारितां स्तोष्ये, नाम्नामष्टशतेन गां ।। १. ॐ ह्रीं श्री आदिब्रह्ममुखाम्भोज प्रभवायै…
सरस्वती मंगल आरती पं. आशाधर सूरि जय मंगलं भवतु शुभमंगलं, जय शीलविमलतरललितांगि ते ।।१।। अर्थ:- जय हो, मंगल हो, शुभ मंगल हो। शील, अति विमल एवं ललित अंगो वाली हे सरस्वती तुम्हारी जय हो। सुरनरोरगमुकुटकिरणरंजितचरणे, परमजिनमुखकमलसंभवति ते।दुरितघनवनविषयतरुनिकरपरशुनिभे, वरसदागमसारस्यंदितनु ते।।२।।जयमंगलं…….. अर्थ:- देवों,मनुष्यों एवं उरगों के मुकुट मणियों की किरणों…
सरस्वती स्तोत्र ( संस्कृत ) चन्द्रार्क कोटिघटितोज्ज्वल-दिव्य-मूर्ते! श्रीचन्द्रिका-कलित-निर्मल-शुभ्रवस्त्रे! कामार्थ-दायि-कलहंस-समाधिरूढे । वागीश्वरि ! प्रतिदिनं मम रक्ष देवि ! ।।१।। देवा-सुरेन्द्र-नतमौलिमणि-प्ररोचि, श्रीमंजरी-निविड-रंजित-पादपद्मे ! नीलालके ! प्रमदहस्ति-समानयाने! वागीश्वरि ! प्रतिदिनं मम रक्ष देवि ! ।।२।। केयूरहार-मणिकुण्डल-मुद्रिकाद्यैः, सर्वाङ्गभूषण-नरेन्द्र-मुनीन्द्र-वंद्ये ! नानासुरत्न-वर-निर्मल-मौलियुक्ते ! वागीश्वरि ! प्रतिदिनं मम रक्ष देवि ! ।।३।। मंजीरकोत्कनककंकणकिंकणीनां, कांच्याश्च झंकृत-रवेण विराजमाने ! सद्धर्म-वारिनिधि-संतति-वर्धमाने ! वागीश्वरि !…
सरस्वती स्तोत्र (हिन्दी) शंभु छंद पद्यानुवाद – पूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी श्रुतदेवी बारह अंगों से, निर्मित जिनवाणी मानी हैं। सम्यग्दर्शन है तिलक किया, चारित्र वस्त्र परिधानी हैं।। चौदह पूर्वों के आभरणों से, सुंदर सरस्वती माता। इस विध से द्वादशांग कल्पित, जिनवाणी सरस्वती माता।।१।। श्रुत ‘आचारांग’ कहा मस्तक, मुख ‘सूत्रकृतांग’ सरस्वति का। ग्रीवा…
सरस्वती के प्रतीक सरस्वती ज्ञान की मूर्ति है,उसके अंग तथा वस्त्राभूषण अपने में प्रतीकात्मक अर्थ को छिपाए हुए हैं, इनका किंचित विवेचना प्रस्तुत है- निर्मल शुभ्रमुख- निर्मल शुभ्रमुख ज्ञान के प्रकाशमान स्वरूप का प्रतीक है उसके मुख को करोड़ों चन्द्रमाओं और सूर्यों से रचित बतलाया है। सूर्य दिन के अंधकार को दूर…
श्री सरस्वती स्तोत्र भाषा कोटि सूरज चन्द्रमा सम विशद जिसकी मूर्ति है। चंद्रिकासम वस्त्र निर्मल धारती सङ्कीर्ति है।। कामना सब सिद्ध करती हंस पर आरूढ़ है। वागीश्वरी रक्षा करो नित भक्ति भाव प्रारूढ है।।१।। नमती सुरासुर मौलिमाला जटिल मणिगण क्रांति से। जिसके चरणरज अतिसुशोभित दीखते संदीप्ति से।। मत्तगजसम चाल जिसकी केश नीले धारती। वागीश्वरी…
प्राणवाय पूर्व का उद्भव, विकास एवं परम्परा सारांश प्राणावाय पूर्व में विवेचित विषय को ही वर्तमान में आयुर्वेद संज्ञा दी गई है। प्रस्तुत आलेख में इस ज्ञान के मूल स्रोत, जैनचार्यों द्वारा इस ज्ञान के आधार पर रचित प्रमाणिक ग्रन्थों का विस्तार पूर्वक विवेचन किया गया है। जैनागम में द्वादशांग के अन्तर्गत बारहवें दुष्टिवादांग…
श्री सरस्वती पूजा स्थापना शंभु छंद तीर्थंकर के मुख से खिरती, अनअक्षर दिव्यध्वनी भाषा। बारह कोठों में सबके हित, परिणमती सर्वजगत् भाषा।। गणधर गुरु जिन ध्वनि को सुनकर, बारह अंगों में रचते हैं। हम दिव्यध्वनी का आह्वानन, करके भक्ती से यजते हैं।।१।। ॐ ह्रीं तीर्थंकरमुखकमलविनिर्गतद्वादशांगमयीसरस्वतीमातः! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। ॐ ह्रीं तीर्थंकरमुखकमलविनिर्गतद्वादशांगमयीसरस्वतीमातः!…
ज्ञानमूर्ति सरस्वती या कुंदेन्दुतुषार हार धवला, या शुभ्रवस्त्रावृता । या वीणा वर दंड मंडित करा, या श्वेत पदमासना ।। सा ब्रह्मार्चित शंकर प्रभृतिभिर्दैवे, सदा वंदिता । सा माम् पातु सरस्वती भगवती नि:शेष जाड्यापहा ।। ज्ञान की देवी वीणा वादिनी, माँ शारदे, वाग्देवी आदि नामों से स्तुल्य सरस्वती माँ ज्ञान की मूर्ति हैं,…