ईख
ईख ईख का अर्थ है गन्ना | यह एक भारतीय फल है जो आकार में डंडे के समान लंबा होता है इसमें बीच में कुछ कुछ दूरी पर गांठे होती है जिसे बोने पर गन्ना पुन: उगता है | इसके पत्ते ऊपर की ओर पतले और बड़े आकार के होते है | गन्ने का रस…
ईख ईख का अर्थ है गन्ना | यह एक भारतीय फल है जो आकार में डंडे के समान लंबा होता है इसमें बीच में कुछ कुछ दूरी पर गांठे होती है जिसे बोने पर गन्ना पुन: उगता है | इसके पत्ते ऊपर की ओर पतले और बड़े आकार के होते है | गन्ने का रस…
ईमानदार ईमानदार व्यक्ति वह है जो प्रत्येक कार्य में दूसरे के विश्वास को अपने प्रति कायम रख सके | बहुत से लोग ईमानदारी का ढिंडोरा तो पिटते है लेकिन ‘मुह में राम बगल में छुरा’ वाला कार्य करते है | ऊपर से तो ईमानदारी , विश्वासपात्र होने का बाना पहनकर स्वयं को अपना हितैषी घोषित…
ईंट ईंट मिट्टी को पकाकर बनाई जाती है | यह चौकोर होती है और भट्टे में बनती है | ईंट कच्ची और पक्की दो तरह कि होती है | कच्ची ईंट सस्ती और पक्की ईंट उससे कुछ मंहगी होती है | मिट्टी को एक विशेष प्रकार के सांचे में भरकर ढाला जाता है फिर उसे…
ईर्ष्या जलन , ईर्ष्या , मात्सर्य ये एक दूसरे के पर्यायवाची नाम है | ईर्ष्यालु व्यक्ति प्रत्येक स्थान पर घ्रणा का पात्र होता है | अपने से दूसरे कि तरक्की , बढोत्तरी , प्रशंसा न सह पाना, ईर्ष्या कहलाती है | ईर्ष्या करने वाले अकारण ही कर्मबंध कर दुख उठाते है जबकि जो व्यक्ति दूसरे…
इंगिनी अच्छे प्रकार से काय और कषाय को क्रश करना सल्लेखना है ।श्रावक के बारह व्रतों में चौथे शिक्षाव्रत के अंत में सल्लेखना मरण का वर्णन है । सल्लेखना के भेदों मे पण्डितमरण सललेखना हैं जिसके तीन भेद हैं – भक्तप्रत्याख्यान, इंगिनी व प्रायोपगमन । जिस सन्यास में अपने द्वारा किये गये उपकार की अपेक्षा…
तृतीय अधिकार व्यवहार-निश्चय मोक्षमार्ग सम्यग्दर्शन औ ज्ञान चरित, ये मुक्ती के कारण जानो। व्यवहारनयापेक्षा कहना, तीनों के लक्षण पहचानो।। इन रत्नत्रयमय निज आत्मा, निश्चयनय से शिव का कारण। इन उभय नयों के समझे बिन, नहिं होता शिवपथ का साधन।।३९।। सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र ये व्यवहारनय से मोक्ष के कारण हैं और निश्चयनय से इन रत्नत्रय…
तत्व और पदार्थ हैं जीव अजीव इन्हीं दो के, सब भेद विशेष कहे जाते। वे आस्रव बंध तथा संवर, निर्जरा मोक्ष हैं कहलाते।। ये सात तत्त्व हो जाते हैं, इनमें जब मिलते पुण्य-पाप। तब नव पदार्थ होते इनको, संक्षेप विधी से कहूँ आज।।२८।। जीव और अजीव का वर्णन किया गया है। इन दो के ही…
१३. वृहद् द्रव्य संग्रह (एक विशेष अध्ययन) प्रथम अधिकार जीव द्रव्य ‘सद्द्रव्यलक्षणम्’ इस सूत्र के अनुसार द्रव्य का लक्षण है ‘सत्’ और सत् का लक्षण है ‘‘उत्पादव्ययध्रौव्ययुत्तंक सत्’’ उत्पाद व्यय और धौव्य से सहित वस्तु ही सत् कहलाती है। वस्तु की नवीन पर्याय की उत्पत्ति का नाम उत्पाद है। वस्तु की पहली पर्याय के विनाश…
८. दिगम्बर जैन मुनि एवं आर्यिकाओं की दिनचर्या यतियों के मूलगुण- पंच१ य महव्वयाइं, समिदीओ पंच जिणवरुद्दिट्ठा। पंचेविंदियरोहा, छप्पि य आवासया लोचो।।२।। आचेलकमण्हाणं, खिदिसयणमदंतघंसणं चेव। ठिदिभोयणेयभत्तं, मूलगुणा अट्ठवीसा दु।।३।। अर्थ-पाँच महाव्रत, पाँच समिति, पाँच इन्द्रिय निरोध, छह आवश्यक, लोच, आचेलक्य, अस्नान, क्षितिशयन, अदंतधावन, स्थितिभोजन और एकभक्त ये अट्ठाईस मूलगुण श्री जिनेन्द्रदेव ने मुनियों के लिए…
(६) पिंडशुद्धि अधिकार दिगम्बर साधु संयम की रक्षा हेतु शरीर की स्थिति के लिए दिन में एक बार छ्यालीस दोष, चौदह मल दोष और बत्तीस अंतरायों को टालकर आगम के अनुकूल नवकोटि विशुद्ध आहार ग्रहण करते हैं। उसी को पिंडशुद्धि या आहार शुद्धि कहते हैं। उग्गम उप्पादण एसणं च संजोजणं पमाणं च। इंगाल धूम कारण…