जिनमंदिर व जिनप्रतिमा निर्माण का पुण्य कुत्थुंभरिदलभेत्ते जिणभवणे जो ठवेइ जिणपणिमं। सरिसवमेत्तं पि लहेइ सो णरो तित्थयरपुण्णं।।४८१।। जो पुण जिणिंदभवणं समुण्णयं परिहि–तोरणसमग्गं। णिम्मावइ तस्स फलं को सक्कइ वण्णिउं सयलं।।४८२।। अर्थ–जो मनुष्य कुथुंम्भरी (धनिया) के दलमात्र अर्थात् पत्र बराबर जिनभवन बनवाकर उसमे सरसों के बराबर भी जिनप्रतिमा को स्थापित करता है, वह तीर्थंकर पद पाने के…
जैनधर्म एवं भगवान ऋषभदेव पढ़ें भगवान ऋषभदेव भगवान ऋषभदेव पढ़े श्री ऋषभदेव तीर्थ स्तुति संग्रह श्री ऋषभदेव के पुत्र भरत से भारत कमल मंदिर, दिल्ली के अतिशयकारी भगवान ऋषभदेव (स्तुति संग्रह एवं पूजा) तीर्थंकर श्री ऋषभदेव चरितम् सर्वसंकटहर श्रीऋषभदेव स्तोत्र- पढ़ें ऋषभदेव : एक परिशीलन बाहरी कड़ियाँ – तीर्थंकर ऋषभदेव तपस्थली तीर्थ प्रयाग का परिचय…
मुम्बई हाईकोर्ट के महत्वपूर्ण निर्णय का सार जैन हिन्दू नहीं हैं यह सुविदित है कि जैन हिन्दुओं से भिन्न धर्म के हैं और अपने धार्मिक विश्वासों में वे अनेक महत्वपूर्ण मामलों में हिन्दुओं से मतभेद रखते हैं। वे वेदों को प्रमाण नहीं मानते और न वे इस विचार के हैं कि कर्मकांड तथा (पशु) बलिदान…
चौबीस तीर्थंकर इस अवसर्पिणी काल में हुए हैं- १. श्री ऋषभदेव २. श्री अजितनाथ ३. श्री संभवनाथ ४. श्री अभिनंदननाथ ५. श्री सुमतिनाथ ६. श्री पद्मप्रभनाथ ७. श्री सुपार्श्वनाथ ८. श्री चन्द्रप्रभनाथ ९. श्री पुष्पदंतनाथ १०. श्री शीतलनाथ ११. श्री श्रेयांसनाथ १२. श्री वासुपूज्यनाथ १३. श्री विमलनाथ १४. श्री अनंतनाथ १५. श्री धर्मनाथ १६. श्री…