चारित्र एवं नैतिकता-जैनदर्शन की दृष्टि में ‘‘चारित्तं खलु धम्मो’’ यह वाक्य श्री कुंदकुंददेव का है। उन्होंने धर्म को ही चारित्र कहा है। व्याकरण की निरुक्ति के अनुसार ‘‘यच्चरति तच्चारित्रं’’ जो आचरण किया जाय वह चारित्र है और धर्म की व्युत्पत्ति में ‘‘उत्तमे सुखे य: धरति स: धर्म:’’ जो उत्तम सुख में पहुंचाता है वह धर्म…
बारह अनुप्रेक्षा (संस्कृत, हिन्दी, मराठी, कन्नड़) इसमें संस्कृत की बारह भावनाएँ श्री अमृतचंद्रसूरि कृत हैं। हिन्दी व कन्नड़ भावनाएँ मेरे द्वारा (गणिनी ज्ञानमती द्वारा) रचित हैं एवं मराठी भावना के कर्ता का नाम अज्ञात है। ये भावनाएँ तत्त्वार्थसूत्र में कथित भावनाओं के क्रम से हैं। अध्रुव अनुप्रेक्षा (अनित्य भावना) श्री अमृतचन्द्रसूरि कहते हैं- क्रोड़ी करोति…
<span data-mce-type=”bookmark” style=”display: inline-block; width: 0px; overflow: hidden; line-height: 0;” class=”mce_SELRES_start”></span> <span data-mce-type=”bookmark” style=”display: inline-block; width: 0px; overflow: hidden; line-height: 0;” class=”mce_SELRES_start”></span><span data-mce-type=”bookmark” style=”display: inline-block; width: 0px; overflow: hidden; line-height: 0;” class=”mce_SELRES_start”></span>
बारह अनुप्रेक्षा (प्राकृत) मंगलाचरण सिद्धे णमंसिदूण य झाणुत्तमखवियदीहसंसारे। दह दह दो दो य जिणे दह दो अणुपेहणा वुच्छं।।१।। जो उत्तम ध्यान के द्वारा दीर्घ संसार का नाश कर चुके हैं ऐसे सिद्ध भगवान को नमस्कार होवे। पुन: दस-दस, दो और दो ऐसे (१०+१०+२+२=२४) चौबीस तीर्थंकरों को नमस्कार करके मैं दस और दो अर्थात् बारह अनुप्रेक्षाओं…
भगवान महावीर की अहिंसा यत्खुलु कषाय योगा आणानां-द्रव्यभावरूपाणामं्। व्यपरोपणस्य करणं सुनिश्चिता भवति सा हिंसा।। श्री अमृतचन्द्र सूरि कषाय के योग से जो द्रव्य और भाव रूप दो प्रकार के प्राणों का घात करना है वह सुनिश्चित ही हिंसा कहलाती है अर्थात् अपने और पर के भावप्राण और द्रव्य प्राण के घात की अपेक्षा हिंसा के…