02. भगवान अजितनाथ (मुख्य)
श्री अजितनाथ भगवान वर्तमान चौबीसी के द्वितीय तीर्थंकर हैं | भगवान ने गर्भ-जन्म-तप और केवलज्ञान अयोध्या एवं मोक्ष सम्मेदशिखर से प्राप्त किया |
श्री अजितनाथ भगवान वर्तमान चौबीसी के द्वितीय तीर्थंकर हैं | भगवान ने गर्भ-जन्म-तप और केवलज्ञान अयोध्या एवं मोक्ष सम्मेदशिखर से प्राप्त किया |
तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव का जीवन दर्शन (Life-sketch of First Teerthankar Bhagwan Rishabhdev) जन्म भूमि अयोध्या (उत्तर प्रदेश) प्रथम आहार हस्तिनापुर के राजा श्रेयांस द्वारा (इक्षुरस) पिता महाराज नाभिराय केवलज्ञान फाल्गुन कृ.११ माता महारानी मरूदेवी मोक्ष माघ कृ.१४ वर्ण क्षत्रिय मोक्षस्थल कैलाश पर्वत वंश इक्ष्वाकु समवसरण में गणधर श्री वृषभसेन आदि ८४…
Religious Order (1) Omniscients (KevalÍ) : The day Lord MahÂvÍra attained salvation, his chief-disciple (Gaàadhara) Gautama acquired omniscience. The day Gautama attained salvation, Sudharm SvÂmÍ gained omniscience. On his salvation, Jambö SvÂmÍ became omniscient. After the salvation of Jambö SvÂmÍ, there was no adjunct omniscient(Anubaddha KevalÍ). The period between attaining the omniscience by Gautama and…
ऊर्जयन्त (गिरनार पर्वत का दूसरा नाम ) पूज्य गणिनी प्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी ने ‘उषा वन्दना’ में सिद्ध पद प्राप्त मुनियों की वन्दना की है । ‘‘ऊर्जयन्त से नेमिप्रभु प्रद्युम्न, शंभु अनिरुद्धारिक । कोटि-बहत्तर सात शतक मुनि, सिद्ध हुए हैं वंदो नित ।’’ निर्वाणकाड में भी लिखा है – ‘‘णेमिसामि पज्जुण्णो संबुकुमारो तहेव अणिरुद्धो ।…
शाश्वत तीर्थंकर परम्परा १.१ संसार सागर को स्वयं पार करने वाले और दूसरों को पार करने का मार्ग बताने वाले तथा धर्म तीर्थ के प्रवर्तक महापुरुष तीर्थंकर कहलाते हैं। ये स्वयं तो मोक्ष प्राप्त करते ही हैं, अन्यों को भी मोक्ष प्राप्त करने का मार्ग बताते हैं। तीर्थंकर बनने के संस्कार १६ कारण भावनाओं के…
शलाका पुरुष ६.१ जो पुरुष पीड़ित किये जाने पर भी अपशब्द या कठोर वचन नहीं बोलते हैं और रत्न-त्रय धारण करके अपनी आत्मा का कल्याण करते हैं, वे महापुरुष कहलाते हैं। जैन आगम में १६९ महापुरुष बताये गये हैं। इनमें ६३ शलाका पुरुष हैं और १०६ अन्य महापुरुष हैं। इन्हें उत्तमपुरुष, दिव्यपुरुष अथवा पुराणपुरुष भी…
कुलकर (मनु): एक समाज व्यवस्थापक ५.१ कर्म-भूमि के प्रारंभ में आर्य पुरुषों को कुल या कुटुम्ब की भांति इकट्ठे रहकर जीने का उपदेश देने वाले महापुरुष कुलकर कहलाते हैं। प्रजा के जीवन-यापन के उपाय जानने के कारण ये मनु भी कहलाते हैं। प्रत्येक अवसर्पिणी काल के तीसरे काल के अंत होने में जब १/८ पल्य…
काल चक्र ४.१ यह जीव अनेक बार जीवन-मरण को प्राप्त होता है अर्थात् जन्म लेता है और आयु पूर्ण होने पर मर जाता है। पुनः जन्म लेता है और आयु पूर्ण होने पर पुनः मर जाता है। द्रव्य के इस परिणमन को काल कहते हैं। वस्तुओं और क्षेत्रों में जो परिवर्तन कराता है वह काल…
नवदेवता एवं नवरात्रि व्रत दशलक्षण, आकाश पंचमी एवं पंचमेरु व्रत शारदा व्रत एवं चारित्रमाला व्रत पर विशेष मंगल प्रवचन! सुगंधदशमी व्रत, अनंतचतुर्दशी व्रत, रत्नत्रय व्रत पर विशेष प्रवचन!
जैनधर्म की प्राचीनता ३.१ प्रवाह की दृष्टि से जैनधर्म अनादि है। समय का चक्र अनादिकाल से अबाधगति से चल रहा है। उसका प्रभुत्व सब पर है। चेतन और अचेतन-सब उससे प्रभावित हैं। धर्म भी इसका अपवाद नहीं है। धर्म शाश्वत होता है, पर उसकी व्याख्या समय के साथ बदलती रहती है। वर्तमान में जैन धर्म…